टोंक राजस्थान का एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिला है। यह 25°42′ से 26°34′ उत्तर अक्षांश और 75°07′ से 76°19′ पूर्व देशांतर के मध्य स्थित है।
उत्तर में जयपुर, पूर्व में सवाई माधोपुर, दक्षिण में बूंदी, कोटा और भीलवाड़ा जिले इसकी सीमाएँ बनाते हैं।
कुल क्षेत्रफल: 7194 वर्ग किमी
प्रमुख तहसीलें: मालपुरा, निवाई, देवली, टोंक, उनियारा, टोडा रायसिंह
यह प्रशासनिक दृष्टि से 6 तहसीलों में विभाजित है, जो जिले के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
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टोंक का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
टोंक का इतिहास अत्यंत प्राचीन है।
- महाभारत काल में इसे संवाद लक्ष्य के नाम से जाना जाता था।
- मौर्य काल में यह क्षेत्र मौर्य साम्राज्य के अधीन था, तत्पश्चात यह मालवों में विलीन हो गया।
- हर्षवर्धन के शासनकाल में अधिकांश भाग उनके अधीन था।
- राजपूत काल में यहाँ चावड़ा, सोलंकी, कछवाहा, सिसोदिया और चौहान वंशों का शासन रहा।
- मुगल काल में जयपुर के राजा मान सिंह ने अकबर के शासन में टारी और टोकड़ा जनपद जीते।
- 1643 में टोकड़ा जनपद के 12 गाँव भोला ब्राह्मण को मिले, जिन्होंने इनका नाम टोंक रखा।
- इसके बाद यह होल्कर और सिंधिया के अधीन रहा।
- 1806 में अमीर खान ने इसे बलवंत राव होल्कर से छीन लिया।
- 1817 की संधि के तहत अंग्रेजों ने इसे अमीर खान को लौटा दिया।
- 25 मार्च 1948 को नवाब मोहम्मद इस्माइल अली खान के शासनकाल में टोंक राजस्थान में विलीन हुआ।
टोंक को राजस्थान का लखनऊ, अदब का गुलशन, अख्तर शीरानी की नगरी, मिठे खर्बूजों का चमन और हिंदू-मुस्लिम एकता का केंद्र कहा जाता है। यहाँ की सांस्कृतिक विविधता और साम्प्रदायिक सौहार्द इसे विशिष्ट बनाते हैं।
टोंक के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल
अरबी-फारसी अनुसंधान संस्थान
- यह संस्थान अरबी और फारसी अध्ययन के लिए भारत का प्रमुख संस्थान है।
- इसकी स्थापना 1978 में राजस्थान सरकार द्वारा की गई थी।
- इसका उद्देश्य राजस्थान में उपलब्ध फारसी और अरबी पांडुलिपियों का संरक्षण और संवर्धन करना है।
सुन्हरी कोठी
- नवाब मोहम्मद इब्राहीम अली खान (1867-1930) द्वारा निर्मित।
- यह भव्य हॉल पुरानी महल परिसर में स्थित है।
- इसकी दीवारें और छतें एनामल मिरर वर्क, गिल्ट और रंगीन कांच से सुसज्जित हैं।
- इसे मंशन ऑफ गोल्ड भी कहते हैं, क्योंकि यह सोने की कारीगरी का अद्भुत उदाहरण है।
हाथी भाटा
- एक विशाल पत्थर से तराशा गया हाथी, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
बिसलदेव मंदिर और बिसलपुर डेम
- चाहमान शासक विग्रहराज IV ने 12वीं सदी में बिसलपुर (विग्रहपुरा) की स्थापना की।
- यहाँ का गोकर्णेश्वर मंदिर (बिसलदेव जी का मंदिर) स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।
- मंदिर में पंचरथ गर्भगृह, अंतराल, वर्गाकार मंडप और शिखर है।
- मंदिर में लिंग स्थापित है और आठ विशाल स्तंभ इसे सहारा देते हैं।
- यहाँ कई शिलालेख मिले हैं, जिनमें सबसे प्राचीन 1154-65 ई. का है, जिसमें चाहमान प्रमुख पृथ्वीराज III का उल्लेख है।
- बिसलपुर डेम राजस्थान का प्रमुख सिंचाई स्रोत है।
हाड़ी रानी बावड़ी, टोडा रायसिंह
- दो मंजिला गलियारों वाली आयताकार बावड़ी।
- पश्चिमी ओर दो मंजिला गलियारे, जिनमें ब्रह्मा, गणेश, महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमाएँ हैं।
- 12वीं-13वीं सदी का निर्माण काल।
डिग्गी कल्याण जी मंदिर
- अत्यंत प्राचीन मंदिर, जिसकी शिखर अत्यंत आकर्षक है।
- 16 स्तंभों पर आधारित शिखर, सुंदर मूर्तिकला।
- पास में लक्ष्मी नारायण जी का मंदिर भी है।
टोंक का भूगोल
टोंक जिला आकार में पतंग या समचतुर्भुज (rhombus) जैसा है, जिसमें पूर्वी और पश्चिमी भाग कुछ भीतर की ओर मुड़े हुए हैं और दक्षिण-पूर्वी भाग सवाई माधोपुर और बूंदी जिलों के बीच बाहर की ओर निकला है।
- औसत ऊँचाई: 214.32 मीटर
- भू-आकृति: समतल मैदान (peneplain) है, जिसमें मोटी जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
- पूर्वी भाग में राजकोट बानेटा की पहाड़ियाँ, दक्षिणी भाग में राजमहल-टोडा रायसिंह की पहाड़ियाँ, टोडी और चांसेन प्रमुख पर्वत श्रंखलाएँ हैं।
नदियाँ
- बनास नदी: जिले की एकमात्र प्रमुख सदानीरा नदी, जो देवली तहसील के नेगड़िया गाँव से प्रवेश करती है और ज़िले को लगभग दो-तिहाई पश्चिम व उत्तर तथा एक-तिहाई पूर्व व दक्षिण में बाँटती है। कुल लंबाई: 400 किमी।
- मांशी नदी: बनास की सहायक, मालपुरा व फागी के बीच बहती है और गाँव गलोड़ पर बनास में मिलती है।
- सोहद्रा नदी: टोडी सागर टैंक (राजस्थान का सबसे बड़ा सिंचाई टैंक) को जल देती है, फिर मांशी में मिलती है।
- अन्य छोटी नदियाँ: खारी, दायन, बांदी, गलवा।
टोंक के प्राकृतिक संसाधन
खनिज संपदा में टोंक का स्थान राज्य में प्रमुख है। यहाँ गार्नेट और एक्वामरीन की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं।
अन्य खनिज: सिलिका सैंड, मिका, एंडालुसाइट, कोरंडम, सोपस्टोन, बिल्डिंग स्टोन।
एक्वामरीन
- बेरिल का एक अर्ध-मूल्यवान प्रकार, समुद्री-हरे से हरे-नीले रंग का, पारदर्शी।
- प्रमुख क्षेत्र: टोडा रायसिंह, बागरे, रामपुरा, झोंपरिया, बोटुंडा, थरेल, हमीरपुर।
गार्नेट
- अलमांडीन किस्म का गहनों में काम आने वाला गार्नेट।
- प्रमुख क्षेत्र: राजमहल से कल्याणपुरा तक, बिसलपुर।
- कई खदानें अब बिसलपुर डेम के जलग्रहण क्षेत्र में आ गई हैं।
जनसंख्या एवं सामाजिक स्थिति
विषय | विवरण |
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जनसंख्या (2011) | 14,21,711 |
जनसंख्या घनत्व | 198 व्यक्ति/वर्ग किमी |
जनसंख्या वृद्धि दर | 17.33% (2001-2011) |
लिंगानुपात | 949 महिलाएँ प्रति 1000 पुरुष |
साक्षरता दर | 62.46% |
टोंक की प्रमुख विशेषताएँ (सारांश तालिका)
विषय | विवरण |
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स्थान | 25°42′-26°34′N, 75°07′-76°19′E |
सीमाएँ | उत्तर-जयपुर, पूर्व-सवाई माधोपुर, दक्षिण-बूंदी, कोटा, भीलवाड़ा |
क्षेत्रफल | 7194 वर्ग किमी |
प्रमुख तहसीलें | मालपुरा, निवाई, देवली, टोंक, उनियारा, टोडा रायसिंह |
प्रमुख नदियाँ | बनास, मांशी, सोहद्रा, खारी, दायन, बांदी, गलवा |
प्रमुख खनिज | गार्नेट, एक्वामरीन, सिलिका सैंड, मिका, सोपस्टोन |
ऐतिहासिक स्थल | सुन्हरी कोठी, बिसलदेव मंदिर, हाड़ी रानी बावड़ी, डिग्गी कल्याण जी, अरबी-फारसी अनुसंधान संस्थान |
प्रसिद्ध उपनाम | राजस्थान का लखनऊ, अदब का गुलशन, अख्तर शीरानी की नगरी, हिंदू-मुस्लिम एकता का केंद्र |
टोंक जिला राजस्थान के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यहाँ की प्राचीन सभ्यता, राजपूत-मुगल इतिहास, नवाबी संस्कृति, भव्य महल, मंदिर, बावड़ियाँ और खनिज संपदा इसे विशिष्ट बनाती हैं।
अरबी-फारसी अनुसंधान संस्थान और सुन्हरी कोठी इसकी सांस्कृतिक धरोहर हैं।
बिसलपुर डेम और बनास नदी यहाँ की कृषि और जल व्यवस्था की रीढ़ हैं।
टोंक की हिंदू-मुस्लिम एकता, साहित्यिक परंपरा और भौगोलिक विविधता इसे राजस्थान के अन्य जिलों से अलग पहचान दिलाती है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- टोंक का इतिहास, भूगोल, प्रशासन, सांस्कृतिक स्थल, प्राकृतिक संसाधन, जनसंख्या – सभी परीक्षोपयोगी तथ्यों का समावेश।
- तालिकाएँ विषयवस्तु को संक्षिप्त और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करती हैं।
- महत्वपूर्ण शब्दों को बोल्ड और इटैलिक किया गया है, जिससे रिवीजन में आसानी हो।