प्रतापगढ़ जिला: इतिहास, भूगोल, खनिज, पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत

By RR Classes

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प्रतापगढ़ राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित एक ऐतिहासिक जिला है, जिसकी भौगोलिक स्थिति 24.03° उत्तर और 74.78° पूर्व पर है। यह जिला लगभग 580 मीटर की औसत ऊँचाई पर स्थित है। इसके चारों ओर उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) और रतलाम, मंदसौर, नीमच (मध्यप्रदेश) जिले हैं।
प्रतापगढ़ का कुल क्षेत्रफल 4,117 वर्ग किलोमीटर है और यह पाँच तहसीलों – अरनोद, छोटी सादड़ी, धरियावद, पीपलखूंट और प्रतापगढ़ में विभाजित है।

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इतिहास: प्रतापगढ़ का गौरवशाली अतीत

प्रतापगढ़ का इतिहास 14वीं शताब्दी से जुड़ा है जब महाराणा कुम्भा (1433–1468) मेवाड़ के शासक थे। एक पारिवारिक विवाद के कारण, उन्होंने अपने छोटे भाई क्षेमकर्ण (1437–1473) को राज्य से निष्कासित कर दिया। क्षेमकर्ण का परिवार अरावली की पहाड़ियों में शरण लेने के लिए चला गया।
1514 ई. में क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल (1473–1530) ने देवल्या (देवगढ़) में अपनी राजधानी स्थापित की।
महारावत प्रताप सिंह (1673–1708) ने 1689–1699 के बीच अपने पैतृक गाँव देवगढ़ के पास एक नया नगर बसाया, जिसका नाम प्रतापगढ़ रखा।

प्रतापगढ़ के शासकों की सूची

शासक का नामशासनकालविशेष कार्य/उपलब्धि
सूरजमल1473–1530देवल्या की स्थापना
बाघ सिंह1530–1535
राय सिंह1535–1552
विक्रम सिंह1552–1563
तेज सिंह1563–1593
भानु सिंह1593–1597
सिंघा1597–1628
जसवंत सिंह1628
हरि सिंह1628–1673
महारावत प्रताप सिंह1673–1708प्रतापगढ़ की स्थापना
पृथ्वी सिंह1708–1718
संग्राम सिंह1718–1719
उम्मेद सिंह1719–1721
गोपाल सिंह1721–1756
सलीम सिंह1756–1774सलीमशाही सिक्का की शुरुआत
सामंत सिंह1774–1844वन विभाग की स्थापना (1828)
दलपत सिंह1844–1864
उदय सिंह1864–1890सुधार, राहत कार्य, नया महल (1867)
रघुनाथ सिंह1890–1929
राम सिंह1929–1940
अम्बिका प्रताप सिंह1940–1948पुणे में निवास

स्वतंत्रता के बाद प्रतापगढ़

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, प्रतापगढ़ ने राजस्थान में स्वतंत्र जिला घोषित होने की शर्त पर भारतीय संघ में विलय किया।
1948 से 1952 तक यह स्वतंत्र जिला रहा, लेकिन बाद में इसका विलय निम्बाहेड़ा और फिर चित्तौड़गढ़ में कर दिया गया।
26 जनवरी 2008 को प्रतापगढ़ को पुनः राजस्थान का 33वां जिला घोषित किया गया, जिसमें चित्तौड़गढ़ से प्रतापगढ़, अरनोद, छोटी सादड़ी, बांसवाड़ा से पीपलखूंट और उदयपुर से धरियावद तहसीलें शामिल की गईं।

प्रतापगढ़ की हस्तकला

प्रतापगढ़, राजस्थान का एक ऐतिहासिक जिला है, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विशिष्ट हस्तकलाओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की हस्तकला न केवल स्थानीय पहचान का प्रतीक है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग छाप छोड़ चुकी है। प्रतापगढ़ की प्रमुख हस्तकलाओं में थेवा कलाआभूषण निर्माण और लोक शिल्प शामिल हैं। आइए, इन हस्तकलाओं को विस्तार से समझते हैं:

1. थेवा कला: प्रतापगढ़ की अनूठी आभूषण कला

थेवा कला प्रतापगढ़ की सबसे प्रसिद्ध और विशिष्ट हस्तकला है। यह कला सोने की महीन चादर को रंगीन कांच पर उकेरने की पारंपरिक तकनीक है, जो 23 कैरेट सोने और बहुरंगी कांच के मेल से बनती है।

  • थेवा कला की शुरुआत मुगल काल में हुई थी और इसे प्रतापगढ़ के नाथू जी सोनी ने विकसित किया।
  • इस कला में सोने की पतली शीट को बेहद बारीकी से काटकर और डिज़ाइन बनाकर, उसे विशेष रूप से तैयार किए गए रंगीन कांच पर चिपकाया जाता है।
  • थेवा आभूषणों में मुख्य रूप से लॉकेट, कंगन, झुमके, हार आदि बनाए जाते हैं।
  • यह कला राज-सोनी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है, और इसके रहस्य केवल परिवार के सदस्यों तक ही सीमित हैं।
  • थेवा कला को UNESCO तथा भारत सरकार द्वारा कई पुरस्कार मिल चुके हैं, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनी है।

विशेषताएँ:

  • थेवा ज्वेलरी की चमक और डिज़ाइन इसे अन्य आभूषणों से अलग बनाती है।
  • इसमें धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दृश्य उकेरे जाते हैं।
  • थेवा आभूषणों की मांग देश-विदेश में है।

2. आभूषण निर्माण: पारंपरिक एवं आधुनिकता का संगम

प्रतापगढ़ में आभूषण निर्माण की परंपरा बहुत पुरानी है। यहाँ के कारीगर सोने, चांदी, तांबे आदि धातुओं से सुंदर आभूषण बनाते हैं।

  • थेवा कला के अलावा, यहाँ के कारीगर पारंपरिक राजस्थानी गहनों जैसे बोरला, नथ, बाजूबंद, कड़े आदि का निर्माण भी करते हैं।
  • आभूषणों में मीनाकारी, कुंदन, नक्काशी जैसी तकनीकों का भी प्रयोग होता है।
  • यहाँ के आभूषणों में स्थानीय संस्कृति, लोक कथाएँ और धार्मिक प्रतीक झलकते हैं।

प्रतापगढ़ के प्रमुख आभूषण

आभूषण का नामविशेषताप्रयुक्त धातु
थेवा लॉकेटसोने की महीन कारीगरी, कांच पर23 कैरेट सोना, कांच
बोरलासिर पर पहनने वाला गहनासोना, चांदी
झुमकेकान के लिएसोना, चांदी
कड़े/बाजूबंदहाथों के लिएसोना, चांदी, तांबा
हारगले के लिएसोना, चांदी

महत्वपूर्ण बिंदु:

  • प्रतापगढ़ के आभूषण विवाह, त्योहार और धार्मिक अवसरों पर विशेष रूप से पहने जाते हैं।
  • इनकी डिज़ाइन में परंपरा और आधुनिकता का सुंदर मेल देखने को मिलता है।

3. लोक शिल्प एवं अन्य हस्तकलाएँ

प्रतापगढ़ की लोक शिल्प परंपरा भी अत्यंत समृद्ध है। यहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ और पुरुष विभिन्न प्रकार की हस्तकलाएँ बनाते हैं, जिनमें मुख्यतः कढ़ाई, बुनाई, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी की नक्काशी आदि शामिल हैं।

  • कढ़ाई और बुनाई:
    महिलाएँ पारंपरिक वस्त्रों पर सुंदर कढ़ाई करती हैं, जिसमें लोक कथाएँ, फूल-पत्तियाँ और धार्मिक प्रतीक उकेरे जाते हैं। बुनाई में ऊन, सूती और रेशमी धागों का उपयोग होता है।
  • मिट्टी के बर्तन:
    ग्रामीण क्षेत्र के कुम्हार सुंदर और उपयोगी मिट्टी के बर्तन बनाते हैं, जिनमें घड़े, सुराही, दीये आदि शामिल हैं। इन पर रंग-बिरंगी चित्रकारी भी की जाती है।
  • लकड़ी की नक्काशी:
    प्रतापगढ़ के कुछ गाँवों में लकड़ी पर नक्काशी का कार्य भी होता है, जिसमें दरवाजे, खिड़कियाँ, पूजा स्थल आदि पर सुंदर डिज़ाइन बनाई जाती हैं।

प्रतापगढ़ के प्रमुख मेले व त्योहार

प्रतापगढ़ जिला अपनी सांस्कृतिक विविधता, परंपराओं और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध है। यहां वर्षभर कई महत्वपूर्ण मेले और त्योहार मनाए जाते हैं, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक मेलजोल, लोककला और परंपराओं को भी जीवित रखते हैं। नीचे प्रतापगढ़ के 9 प्रमुख मेले व त्योहारों का विस्तार से वर्णन किया गया है:

1. अम्बामाता मेला (Ambamata Fair)

अम्बामाता मेला प्रतापगढ़ जिले का एक प्रसिद्ध धार्मिक मेला है। यह मेला अम्बामाता मंदिर परिसर में आयोजित होता है, जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं।

  • मेला स्थल: अम्बामाता मंदिर, प्रतापगढ़
  • विशेषता: माता के भक्तजन इस मेले में पूजा-अर्चना करते हैं, भजन-कीर्तन और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं।
  • सांस्कृतिक पक्ष: मेले में लोकनृत्य, लोकगीत और पारंपरिक व्यंजन भी आकर्षण का केंद्र होते हैं।

2. सीता माता मेला (Sita Mata Fair)

सीता माता मेला प्रतापगढ़ के सीता माता अभयारण्य क्षेत्र में आयोजित होता है।

  • मेला स्थल: सीता माता मंदिर, सीता माता अभयारण्य
  • महत्व: यह मेला देवी सीता को समर्पित है और चैत्र-वैशाख माह में लगता है।
  • विशेष आयोजन: स्थानीय जनजातियाँ और श्रद्धालु यहाँ पूजा, कथा-वाचन और झांकियों के माध्यम से माता सीता की महिमा का गुणगान करते हैं।
  • पर्यावरणीय पक्ष: अभयारण्य के प्राकृतिक वातावरण में मेले की रौनक और बढ़ जाती है।

3. गौतमेश्वर मेला (Gautameshwar Fair)

गौतमेश्वर मेला प्रतापगढ़ जिले का एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जो वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

  • मेला स्थल: गौतमेश्वर मंदिर
  • धार्मिक पक्ष: इस दिन श्रद्धालु गौतमेश्वर महादेव के दर्शन हेतु एकत्रित होते हैं।
  • विशेषता: यहाँ पवित्र स्नान, पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन होते हैं।
  • सामाजिक पक्ष: यह मेला सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जहाँ विभिन्न गाँवों के लोग एकत्रित होते हैं।

4. भंवर माता मेला (Bhanwar Mata Fair)

भंवर माता मेला चोटी सादड़ी तहसील के भंवर माता शक्तिपीठ में आयोजित होता है।

  • स्थापना: भंवर माता मंदिर का निर्माण 491 ई. में राजा गोरी द्वारा किया गया था।
  • मेला स्थल: भंवर माता मंदिर, चोटी सादड़ी
  • विशेषता: यहाँ शक्ति उपासना के साथ-साथ भव्य मेला लगता है, जिसमें श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं।
  • अनुष्ठान: माता की पूजा, जागरण, भंडारा आदि आयोजित होते हैं।

5. शौली-हनुमानजी मेला (Shauli-Hanumanji Fair)

यह मेला प्रतापगढ़ के शौली गाँव में स्थित हनुमानजी के मंदिर में आयोजित होता है।

  • मेला स्थल: शौली, प्रतापगढ़
  • धार्मिक पक्ष: हनुमानजी की पूजा, आरती और भजन संध्या का आयोजन किया जाता है।
  • विशेषता: मेले में स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी अधिक होती है, जो अपनी आस्था के साथ मेले की रौनक बढ़ाते हैं।

6. गंगेश्वर-परसोला मेला (Gangeshwar-Parsola Fair)

गंगेश्वर-परसोला मेला प्रतापगढ़ के परसोला गाँव में स्थित गंगेश्वर महादेव मंदिर में आयोजित होता है।

  • मेला स्थल: परसोला, प्रतापगढ़
  • धार्मिक आयोजन: शिवलिंग का जलाभिषेक, पूजा-अर्चना और भजन-कीर्तन होते हैं।
  • सांस्कृतिक पक्ष: मेले में ग्रामीण खेल, लोकनृत्य और मेल-मिलाप का माहौल रहता है।

7. डूंडोत्सव (Doondhotsava / Rang Teras)

डूंडोत्सव प्रतापगढ़ की एक अनूठी परंपरा है, जो होली के तेरहवें दिन यानी रंग तेरस को मनाई जाती है।

  • विशेषता: यहाँ धुलेंडी (रंग खेलने का पर्व) होली के अगले दिन न मनाकर, तेरहवें दिन मनाया जाता है।
  • सांस्कृतिक पक्ष: इस दिन नगरवासियों द्वारा रंग-गुलाल, लोकनृत्य और गीतों के साथ उत्सव मनाया जाता है।
  • महत्व: यह परंपरा प्रतापगढ़ की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है।

8. गेर नृत्य व दशामाता पर्व (Gair Dance & Dashamata Festival)

गेर नृत्य प्रतापगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में दशामाता पर्व के अवसर पर किया जाता है।

  • त्योहार: दशामाता पर्व
  • विशेषता: इस दिन गाँवों में पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में गेर नृत्य करते हैं।
  • सांस्कृतिक पक्ष: गेर नृत्य समूह में किया जाता है, जिसमें ढोल, थाली, नगाड़े आदि वाद्ययंत्रों के साथ नृत्य होता है।
  • महत्व: यह नृत्य सामाजिक एकता और लोकसंस्कृति का प्रतीक है।

9. शीतला सप्तमी (Sheetala Saptami)

शीतला सप्तमी प्रतापगढ़ का एक प्रमुख पर्व है, जिसमें शीतला माता की पूजा की जाती है।

  • धार्मिक पक्ष: इस दिन महिलाएँ शीतला माता की पूजा करती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
  • विशेष परंपरा: इस दिन मक्की के ढोकले (एक दिन पहले बनाए गए) का सेवन किया जाता है।
  • सांस्कृतिक पक्ष: यह पर्व स्वास्थ्य, स्वच्छता और पारिवारिक एकता का संदेश देता है।

खनिज एवं प्राकृतिक संसाधन

खनिज/संसाधनप्रमुख क्षेत्र/गाँवविशेषता
चूना पत्थरदांता-केला-मेला (पीपलखूंट), देवला (धरियावद)सीमेंट ग्रेड भी उपलब्ध
सोपस्टोनदेवला, लोहागढ़, भुंगापाट, अंबाव, घाड़ाउच्च ग्रेड, कॉस्मेटिक/पेपर
रेड ओखर/लेटराइटधमोतार, गोपालपुरा, चोकड़ी, कल्याणपुरा, डोंगरीबेसाल्ट रॉक पर स्थित
बैराइट्सपीपलियाखेड़ा, रायनपुरा, कुलमीपुरा, मानपुरा, भमड़ाई
संगमरमरदेवल (धरियावद)सफेद व ग्रे रंग, ब्लॉक योग्य
निर्माण पत्थरदेवल (धरियावद), केसुंडा (छोटी सादड़ी)बेसाल्ट/लो ग्रेड डोलोमाइट

जनसंख्या एवं भाषा

  • प्रमुख भाषा: हिंदी, लेकिन गाँवों में कंठाली बोली (मालवी, मेवाड़ी, वागड़ी मिश्रित) प्रचलित है।
  • 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या: 8,67,848
  • राजस्थान के 33 जिलों में दूसरा सबसे कम जनसंख्या वाला जिला (जैसलमेर के बाद)।
  • जनसंख्या वृद्धि दर (2001–2011): 22.78%
  • जनसंख्या घनत्व: 195 व्यक्ति/वर्ग किमी
  • लिंगानुपात: 983 महिलाएँ प्रति 1000 पुरुष

संक्षिप्त सारणी: प्रतापगढ़ के तथ्य

विषयविवरण
स्थानदक्षिण-पूर्व राजस्थान
क्षेत्रफल4,117 वर्ग किमी
प्रमुख तहसीलेंअरनोद, छोटी सादड़ी, धरियावद, पीपलखूंट, प्रतापगढ़
प्रमुख नदियाँजाखम, माही, सिवाना (शिव)
प्रमुख स्थलदेवगढ़, भंवर माता मंदिर, सीता माता अभयारण्य
प्रमुख खनिजचूना पत्थर, सोपस्टोन, संगमरमर, बैराइट्स
जनसंख्या (2011)8,67,848
लिंगानुपात983 महिलाएँ प्रति 1000 पुरुष
Official Websitehttps://pratapgarh.rajasthan.gov.in/content/raj/pratapgarh/en/home.html

प्रतापगढ़ न केवल राजस्थान का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध जिला है, बल्कि इसकी प्राकृतिक विविधता, खनिज संपदा, लोक कला और त्योहार भी इसे विशेष बनाते हैं। यहाँ की थेवा कला, सीता माता अभयारण्य, देवगढ़ जैसे स्थल, और कंठाली बोली इसकी पहचान हैं।
प्रतापगढ़ का अध्ययन प्रतियोगी परीक्षाओं, सामान्य ज्ञान एवं राजस्थान के क्षेत्रीय अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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