हाड़ौती चित्रशैली राजस्थान की प्रमुख और विशिष्ट चित्रशैलियों में से एक है, जिसका विकास मुख्यतः बूंदी, कोटा, झालावाड़ और आसपास के क्षेत्रों में हुआ। यह शैली अपने प्राकृतिक दृश्यों, शिकार, दरबारी जीवन, धार्मिक विषयों और रंगों की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। हाड़ौती चित्रशैली ने न केवल स्थानीय संस्कृति और राजसी जीवन को उकेरा, बल्कि राजस्थानी चित्रकला की विविधता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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हाड़ौती चित्रशैली का ऐतिहासिक विकास
हाड़ौती चित्रकला का इतिहास राजस्थानी चित्रकला के समानांतर ही विकसित हुआ है। इसमें मुख्य रूप से बूंदी शैली, कोटा शैली, झालावाड़ शैली और अन्य ठिकानों की कला को सम्मिलित किया जाता है ।
बूंदी राज्य की स्थापना राव देवा जी ने 1342 ई. में की थी, और इसी के नाम पर बूंदी पड़ा ।
बूंदी शैली का स्वतंत्र विकास राजा सुरजन सिंह (1554-1585) के समय हुआ, जिन्होंने रणथंभौर का किला जीता और चित्रकला को संरक्षण दिया ।
राव रतन सिंह (1607-1631) के काल में दक्षिण भारतीय प्रभाव और मुगल प्रभाव दोनों दिखने लगे ।
कोटा शैली का स्वतंत्र विकास महाराजा राम सिंह और फिर महाराजा उम्मेद सिंह (1771-1820) के समय हुआ ।
झालावाड़ शैली का विकास 19वीं सदी में हुआ, जिसमें कोटा-बूंदी की झलक मिलती है ।
हाड़ौती चित्रशैली की उपशैलियाँ
उपशैली
प्रमुख केंद्र
विशेषता
बूंदी शैली
बूंदी
प्राकृतिक दृश्य, रागमाला, नायिका भेद, रेखांकन में सजीवता
कोटा शैली
कोटा
शिकार, दरबारी जीवन, पशु-पक्षी, जलरंगों का प्रयोग
झालावाड़ शैली
झालावाड़
कोटा-बूंदी शैली का मिश्रण, धार्मिक विषय, प्रकृति
हाड़ौती चित्रशैली के प्रमुख विषय
विषय
उदाहरण/विवरण
प्राकृतिक दृश्य
सरोवर, सतरंगी बादल, नाचते मोर, केले के वृक्ष, इंद्रधनुष
शिकार
सूअर, शेर, हाथी का शिकार, शिकार करते राजा
दरबारी जीवन
दरबार, उत्सव, संगीत, नृत्य, विवाह
धार्मिक
राधा-कृष्ण मिलन, रामायण, भागवत, रागमाला
सामाजिक
चौपड़ खेलती महिलाएँ, स्नान दृश्य, त्योहार
बूंदी शैली की विशेषताएँ
नेत्र: परवल के आकार के नेत्र, आकृतियाँ लंबी, छोटी नाक, काले लहंगे और लाल चुनरी में स्त्रियाँ ।
प्राकृतिक चित्रण: केले के वृक्ष, बादल, इंद्रधनुष, सरोवर, नाचते मोर, रंगीन आकाश ।
दक्षिणी प्रभाव: दक्खिनी शैली का प्रभाव, भित्ति चित्रों में सजावट ।
कोटा शैली की विशेषताएँ
शिकार के दृश्य: शेर, सूअर, हाथी, हिरन का शिकार, राजा का शिकार अभियान ।
प्राकृतिक चित्रण: नदी, जंगल, कछुए, बतख, बगुले, कमल के फूल ।
दरबारी जीवन: राजा का दरबार, संगीत, नृत्य, उत्सव।
रंग संयोजन: नीला, हरा, पीला, सफेद रंग।
प्रसिद्ध चित्रकार: रघुनाथ, डाला, बच्छीराम, नर्मदा, जयराम ।
हाड़ौती चित्रशैली के प्रमुख चित्रकार और कृतियाँ
चित्रकार
उपशैली/स्थान
प्रमुख कृति/योगदान
मोहन
बूंदी
दूज का चाँद देखते प्रेमी युगल
रघुनाथ
कोटा
रामायण सेट, शिकार दृश्य
डाला
कोटा
रामायण सेट (1768), दरबारी चित्र
बच्छीराम
कोटा
शेर, बतख, कछुए, प्राकृतिक दृश्य
नर्मदा, जयराम
कोटा
शिकार, दरबार, उत्सव
हाड़ौती चित्रशैली की अन्य विशेषताएँ
भित्ति चित्रण: महलों, हवेलियों, मंदिरों की दीवारों पर भित्ति चित्र ।
लघु चित्रण: कागज, कपड़े, ताड़पत्र पर लघु चित्र ।
प्राकृतिकता: वृक्ष, जल, बादल, इंद्रधनुष, पशु-पक्षी का सुंदर चित्रण ।
स्त्रियों का चित्रण: काले लहंगे, लाल चुनरी, छोटी नाक, लंबी आकृति।
सजावट: चित्रों में केले के पत्ते, वृक्ष, रंगीन आकाश, इंद्रधनुष ।
दक्षिण भारतीय प्रभाव: विशेषकर बूंदी शैली पर ।
विषय विविधता: रागमाला, बारहमासा, नायिका भेद, शिकार, दरबार, स्नान दृश्य, प्रेम, त्योहार ।
रंग, सामग्री और तकनीक
सामग्री/रंग
स्रोत/प्रयोग
नारंगी
गेरू, सिंदूर
हरा
पत्तियाँ, हरा पत्थर
नीला
नील, लैपिस लाजुली
लाल
सिंदूर, गेरू
काला
कालिख, कोयला
कागज, कपड़ा
चित्रण के माध्यम
सोना-चाँदी
विशेष चित्रों में
हाड़ौती चित्रशैली का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
प्राकृतिकता और जीवन्तता: हाड़ौती शैली में प्रकृति, ऋतुओं, उत्सवों और लोकजीवन का सुंदर चित्रण है ।
राजसी जीवन: शिकार, दरबार, उत्सव, संगीत, नृत्य आदि विषयों में राजसी ठाट का प्रदर्शन।
धार्मिकता: राधा-कृष्ण, रामायण, भागवत, रागमाला, बारहमासा जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक विषय।
महिला चित्रण: स्त्रियों की सादगी, श्रृंगार, पारंपरिक वस्त्र और गहनों का सुंदर चित्रण।
पर्यटन और विरासत: बूंदी, कोटा, झालावाड़ के महलों, हवेलियों, मंदिरों में आज भी ये चित्र पर्यटकों को आकर्षित करते हैं ।
महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Facts) – परीक्षा दृष्टि से
बिंदु
विवरण
हाड़ौती शैली के भाग
बूंदी, कोटा, झालावाड़ शैली
बूंदी शैली का स्वर्णकाल
राव सुरजन सिंह (1554-1585)
कोटा शैली का उत्कर्ष
महाराजा उम्मेद सिंह (1771-1820)
प्रमुख विषय
शिकार, प्राकृतिक दृश्य, दरबार, रागमाला
प्रमुख चित्रकार
मोहन (बूंदी), रघुनाथ, डाला (कोटा)
रंगों की प्रधानता
नारंगी, हरा, नीला, लाल
दक्षिणी प्रभाव
बूंदी शैली पर
संरक्षण और वर्तमान स्थिति
बूंदी, कोटा, झालावाड़ के महलों, हवेलियों, मंदिरों में भित्ति चित्र आज भी सुरक्षित हैं ।
संग्रहालयों, आर्ट गैलरी और निजी संग्रह में भी हाड़ौती चित्रशैली के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं।
आधुनिक कलाकार पारंपरिक शैली को नवाचार के साथ अपना रहे हैं।
राज्य सरकार और निजी संस्थाएँ संरक्षण के लिए प्रयासरत हैं।
हाड़ौती चित्रशैली ने राजस्थान की चित्रकला को प्राकृतिकता, रंगबिरंगे दृश्य, शिकार, दरबारी जीवन और धार्मिकता के माध्यम से नई ऊँचाई दी। बूंदी, कोटा, झालावाड़ आदि क्षेत्रों में विकसित यह शैली आज भी अपनी विशिष्टता, भव्यता और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है। संरक्षण और नवाचार के साथ यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।