जालोर जिला: इतिहास, भूगोल, प्रशासन, खनिज, दर्शनीय स्थल एवं संस्कृति – सम्पूर्ण अध्ययन नोट्स

By RR Classes

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जालोर राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। यह जिला अपनी मजबूत किलाबंदी, प्राचीन मंदिरों, जीवंत लोक संस्कृति, और खनिज संपदा के लिए प्रसिद्ध है। जालोर को “मरु प्रदेश का सोनागिरि” भी कहा जाता है। स्वतंत्रता के बाद यह जोधपुर राज्य से अलग होकर एक स्वतंत्र जिला बना।

स्थान, क्षेत्रफल एवं प्रशासन

  • जालोर जिला 24°48′ 5″ से 25°48′ 37″ उत्तर अक्षांश और 71°7′ से 75°5′ 53″ पूर्व देशांतर के बीच स्थित है।
  • उत्तर-पश्चिम में बाड़मेर, उत्तर-पूर्व में पाली, दक्षिण-पूर्व में सिरोही और दक्षिण में गुजरात राज्य से इसकी सीमाएँ मिलती हैं।
  • कुल क्षेत्रफल 10,640 वर्ग किमी है, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 3.11% है।
  • प्रशासनिक दृष्टि से जिले को 8 प्रमुख तहसीलों में बाँटा गया है: जालोर, आहोर, भीनमाल, रानीवाड़ा, सांचौर, सायला, बागोड़ा, भड़ाजून, चितलवाना
तहसील का नाममुख्य विशेषता
जालोरजालोर जिला मुख्यालय, ऐतिहासिक केंद्र
आहोरखनिज व कृषि क्षेत्र
भीनमालसांस्कृतिक, शैक्षिक केंद्र
रानीवाड़ाखनिज व ग्रामीण क्षेत्र
सांचौरव्यापारिक व कृषि क्षेत्र
सायलाग्रामीण क्षेत्र
बागोड़ाकृषि प्रधान क्षेत्र
भड़ाजून, चितलवानाऐतिहासिक व ग्रामीण क्षेत्र

इतिहास: जालोर का गौरवशाली अतीत

  • पौराणिक कथाओं के अनुसार, जालोर को ‘ड्रमकुल्य’ कहा गया, जो दक्षिणी समुद्र के उत्तरी भाग का द्योतक है।
  • इसका प्राचीन नाम ‘जाबालिपुर’ था, जो महर्षि जाबालि के नाम पर पड़ा।
  • कांचनगिरि और स्वर्णगिरि पर्वत भी जालोर के प्राचीन नाम हैं।
  • 8वीं सदी में यहाँ प्रतिहार राजा वत्सराज का शासन था।
  • 12वीं सदी के अंत में परमार शासकों का शासन रहा। माना जाता है कि जालोर का प्रसिद्ध किला परमारों ने बनवाया।
  • नाडोल के राजा अर्हन के पुत्र कीर्तिपाल ने यहाँ चौहान वंश की नींव रखी और आगे इनकी वंशावली चली:
शासक का नामशासन कालउपलब्धि/विशेषता
कीर्तिपाल1160-1182चौहान परंपरा की शुरुआत
समर सिंह1182-1204
उदयसिंह1204-1257
चाचिगा देव1257-1282
सामंत सिंह1282-1305
कान्हा देव1292-1311‘कान्हा-प्रबंध’ ग्रंथ की रचना, अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध
  • 15वीं सदी में राठौड़ राजा राव मालदेव ने जालोर किले पर अधिकार किया।
  • अकबर के समय अब्दुल रहीम खानखाना ने जालोर को गजनी खान से छीन लिया।
  • जहाँगीर ने किले की दीवारें बनवाईं।
  • औरंगजेब की मृत्यु के बाद यह स्थायी रूप से जोधपुर राज्य का हिस्सा बन गया।

जालोर के ऐतिहासिक स्थल

1. जालोर किला

  • मरु प्रदेश के नौ किलों में से एक, 10वीं सदी में परमारों द्वारा निर्मित।
  • सोनागिरि’ या ‘स्वर्णगिरि’ के नाम से भी प्रसिद्ध।
  • 336 मीटर ऊँची पहाड़ी पर स्थित, चार विशाल द्वार, केवल एक ओर से पहुँच संभव।
  • दो मील लंबी घुमावदार चढ़ाई।

2. तोपखाना

  • ‘तोपखाना’ या ‘तोप निर्माणशाला’ को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने संस्कृत पाठशाला के रूप में बनवाया था।
  • बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इसे मुस्लिम स्मारक में बदल दिया।
  • भव्य स्तंभ, सुंदर नक्काशी, विशाल प्रांगण।

3. सुंधा माता मंदिर

  • अरावली पर्वतमाला में 1220 मीटर ऊँचाई पर स्थित, लगभग 900 वर्ष पुराना।
  • माँ चामुंडा देवी का प्राचीन मंदिर, प्रमुख तीर्थ स्थल।

जालोर के प्रमुख लोकनृत्य

ढोल नृत्य

  • यह जालौर जिले का सबसे प्रसिद्ध लोकनृत्य है।
  • मुख्य रूप से ढोली, माली, सरगरा, भील आदि जातियों के पुरुषों द्वारा किया जाता है।
  • यह नृत्य विशेष रूप से विवाह जैसे शुभ अवसरों पर किया जाता है।
  • इसमें चार-पाँच ढोल एक साथ बजाए जाते हैं। ढोल का मुखिया ‘थाकना शैली’ में ढोल बजाना शुरू करता है, फिर अन्य नर्तक मुँह में तलवार, हाथ में डंडे या रूमाल लेकर नृत्य करते हैं।
  • इस नृत्य को राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास ने भी सराहा और प्रोत्साहित किया था ।

गैर नृत्य

  • गैर नृत्य भी जालौर सहित राजस्थान के कई क्षेत्रों में लोकप्रिय है।
  • इसमें पुरुष टोली हाथ में लंबी छड़ियां लेकर नाचती है और डांडिया (छड़ियां) टकराते हुए नृत्य करती है।
  • यह नृत्य होली के बाद आरंभ होता है और इसमें राजा-रानी, राम-सीता, शिव-पार्वती, कृष्ण-राधा आदि के वेश में नर्तक भाग लेते हैं।

घुड़ला नृत्य

  • यह मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जो शीतलाष्टमी से गणगौर तक किया जाता है।
  • इसमें महिलाएं छिद्रित मटके (घुड़ला) में दीपक जलाकर सिर पर रखकर नृत्य करती हैं।

अन्य उल्लेखनीय नृत्य

  • जालौर क्षेत्र में भील जाति के अन्य नृत्य जैसे गवरी, युद्ध नृत्य आदि भी प्रचलित हैं6।
  • मारवाड़ क्षेत्र के अन्य नृत्य: डांडिया, घूमर, तेरह ताली, लूर, अग्नि नृत्य।
नृत्य का नामविशेषता/विवरण
डांडिया नृत्यहोली के बाद कई दिनों तक चलता है, पुरुष वाद्य यंत्रों के साथ
जालोर ढोल नृत्यविवाह अवसर पर, माली, ढोली, सर्गरा, भील समुदाय द्वारा, तलवार, लाठी व रूमाल के साथ
गैर नृत्यहोली के अगले दिन से 15 दिन तक, पुरुष, सफेद वस्त्र, तलवार, थाली, ढोल के साथ

हस्तशिल्प एवं कारीगरी

  • हैंडलूम का कार्य लेटा, जेलेटारा, देगांव, पुर, वोधा, वसंदेवड़ा, लालपुरा, भटिप, खारा, गुंडाऊ में प्रसिद्ध है।
  • भीनमाल की चमड़े की जूतियाँ (Leather Juti) प्रसिद्ध हैं।

भूगोल एवं प्राकृतिक संरचना

  • जिले का आकार लंबा-चौड़ा है, जो कच्छ के रण (गुजरात) तक फैला है।
  • उत्तर में घने जंगलों वाली पहाड़ियाँ, केंद्र में छोटी पहाड़ियाँ, पूर्वी भाग पथरीला, पश्चिमी भाग समतल और रेत के टीलों से युक्त।
  • भीनमाल तहसील के दक्षिण-पूर्व में सबसे ऊँचे पर्वत (सुंधा – 991 मीटर) हैं।
  • मुख्य नदी लूणी है, जिसकी सहायक नदियाँ जवाई, सूकड़ी, खारी, बांडी, सगी हैं। सभी नदियाँ ऋतु आधारित (seasonal) हैं।
प्रमुख नदीसहायक नदियाँविशेषता
लूणीजवाई, सूकड़ी, खारी, बांडी, सगीसभी मौसमी, सिंचाई में सहायक

प्राकृतिक स्थल एवं वन्यजीव

सुंधा माता वन्यजीव अभयारण्य

  • 107 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला, जवाई वन क्षेत्र में स्थित।
  • यहाँ स्लॉथ बीयर, नीलगाय, जंगली बिल्ली, रेगिस्तानी लोमड़ी, पट्टीदार लकड़बग्घा, लंगूर, गिद्ध, उल्लू, साही, बटेर, तीतर और 120 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

खनिज संपदा

जालोर जिला खनिजों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ मुख्य रूप से फ्लोरस्पार, ग्रेनाइट, क्ले, साल्टपीटर, जिप्सम, डोलोमाइटिक मार्बल, ग्रेफाइट, फेल्डस्पार आदि पाए जाते हैं।

खनिजप्रमुख क्षेत्र/उपयोग
फ्लोरस्पारभीनमाल के करड़ा गाँव, कृष्णा हिल, रेखा हिल, संतोषी हिल
ग्रेनाइटसिवाना, जालोर, खांबी, कावला, तायब, बाला, रानीवाड़ा खुर्द
क्लेभड़ाजून, पाल
साल्टपीटरआहोर के कंवला गाँव, स्थानीय मिट्टी, पटाखे, बारूद निर्माण
जिप्समरामसीन, चावंडा (आहोर), सांचौर, वेडिया, चितलवाना, सेवाड़ा, हेमागुरा, हरियाली
डोलोमाइटिक मार्बलरूपी (भीनमाल से 9.5 किमी दक्षिण-पश्चिम)
ग्रेफाइट, फेल्डस्पारभीनमाल के पूर्व में अल्प मात्रा में
निर्माण पत्थर, बजरीस्थानीय निर्माण कार्यों में उपयोग

जनसंख्या एवं सामाजिक संरचना

  • 2011 की जनगणना के अनुसार, जालोर जिले की कुल जनसंख्या 18,30,151 थी।
  • जनसंख्या वृद्धि दर (2001-2011): 26.31%
  • जनसंख्या घनत्व: 172 व्यक्ति/वर्ग किमी
  • लिंगानुपात: 951 (1000 पुरुषों पर 951 महिलाएँ)
  • साक्षरता दर: 55.58%
वर्षकुल जनसंख्याजनसंख्या घनत्वलिंगानुपातसाक्षरता दर (%)
201118,30,15117295155.58

जालोर की सांस्कृतिक विशेषताएँ

  • डांडिया, ढोल, गैर जैसे लोकनृत्य यहाँ की पहचान हैं।
  • सर्गरा और ढोली समुदाय के लोग पारंपरिक लोकगीत और वाद्ययंत्रों के विशेषज्ञ हैं।
  • भीनमाल के चमड़े की जूतियाँ और विभिन्न गाँवों का हैंडलूम कार्य प्रसिद्ध है।
  • होली के अवसर पर गैर और डांडिया नृत्य का आयोजन होता है, जिसमें पुरुष सफेद वस्त्र, तलवार, लाठी, रूमाल आदि के साथ भाग लेते हैं।

जालोर के मुख्य तथ्य

विषयविवरण
क्षेत्रफल10,640 वर्ग किमी
जनसंख्या (2011)18,30,151
जनसंख्या घनत्व172 व्यक्ति/वर्ग किमी
लिंगानुपात951
साक्षरता दर55.58%
प्रमुख नदियाँलूणी, जवाई, सूकड़ी, खारी, बांडी, सगी
प्रमुख स्थलजालोर किला, तोपखाना, सुंधा माता मंदिर, सुंधा अभयारण्य
प्रमुख खनिजफ्लोरस्पार, ग्रेनाइट, क्ले, जिप्सम, डोलोमाइटिक मार्बल
प्रमुख लोकनृत्यडांडिया, ढोल, गैर

जालोर जिला अपनी ऐतिहासिक विरासत, किलों, मंदिरों, खनिज संपदा, जीवंत लोक संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के किले, मंदिर, अभयारण्य, लोकनृत्य, हस्तशिल्प और खनिज न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक और आर्थिक धरोहर का हिस्सा हैं।
जालोर का अध्ययन प्रतियोगी परीक्षाओं, सामान्य ज्ञान और राजस्थान की सांस्कृतिक समझ के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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