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झालावाड़ जिला: इतिहास, भूगोल, प्रशासन, खनिज, दर्शनीय स्थल एवं संस्कृति – सम्पूर्ण अध्ययन नोट्स

झालावाड़ जिला: इतिहास, भूगोल, प्रशासन, खनिज, दर्शनीय स्थल एवं संस्कृति – सम्पूर्ण अध्ययन नोट्स

झालावाड़ राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। यह जिला अपनी हरितिमा, जलवायु, ऐतिहासिक दुर्गों, मंदिरों, दर्शनीय झीलों और वन्य जीव अभयारण्यों के लिए प्रसिद्ध है। झालावाड़ को राजस्थान का चेरापूंजी भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ सबसे अधिक वर्षा होती है। यहाँ की संस्कृति, स्थापत्य और प्राकृतिक स्थल इसे राज्य के अन्य जिलों से अलग पहचान देते हैं।

स्थान, क्षेत्रफल एवं प्रशासन

तहसील का नाममुख्यालयप्रशासनिक विशेषता
झालावाड़झालावाड़जिला मुख्यालय, प्रशासनिक केंद्र
अकलेराअकलेराकृषि एवं व्यापारिक केंद्र
पिड़ावापिड़ावामध्यप्रदेश सीमा, ग्रामीण क्षेत्र
गंगधारगंगधारऐतिहासिक स्थल, ग्रामीण क्षेत्र
भवानीमंडीभवानीमंडीरेलवे जंक्शन, व्यापारिक केंद्र
खानपुरखानपुरकृषि प्रधान क्षेत्र
रटलाईरटलाईग्रामीण क्षेत्र
बकानीबकानीकृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र

झालावाड़ का इतिहास

झालावाड़ का इतिहास 19वीं सदी से जुड़ा है। 1838 ई. में कोटा राज्य से अलग होकर झालावाड़ राज्य की स्थापना हुई। इस राज्य के संस्थापक झाला जाति के महाराज राणा जालिम सिंह थे, जिनके नाम पर जिले का नाम पड़ा।
झालावाड़ के शासक झाला राजपूत वंश के थे, जिनका मूल गुजरात के हलवद से था।
ब्रिटिश काल में झालावाड़ एक स्वतंत्र रियासत रहा और 1948 में राजस्थान राज्य में विलीन हुआ।

प्रमुख शासक व उपलब्धियाँ

शासक का नामशासन काल/विशेषताउपलब्धि/महत्व
महाराज राणा जालिम सिंह1838-1875झालावाड़ राज्य की स्थापना
महाराज राणा जले सिंह1875-1899प्रशासनिक सुधार
महाराज राणा भवानी सिंह1899-1929शिक्षा, स्वास्थ्य में विकास
महाराज राणा हरि सिंह1929-1948भारत में विलय

भूगोल एवं जलवायु

झालावाड़ का भूगोल मालवा पठार के विस्तार में आता है। यहाँ की भूमि उपजाऊ, काली मिट्टी (रेगुर) और लाल बलुई मिट्टी की प्रधानता लिए हुए है।
जिले में चंबल, काली सिंध, पार्वती, उजाड़, आहू और उजैन प्रमुख नदियाँ हैं, जो सिंचाई और जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत हैं।

प्रमुख नदीविशेषता
चंबलउत्तर-पश्चिमी सीमा बनाती है
काली सिंधजिले के मध्य बहती है
पार्वतीदक्षिण-पूर्वी भाग में
आहूउपनदी, सिंचाई में सहायक

खनिज संपदा

झालावाड़ जिला खनिज संसाधनों के लिए भी जाना जाता है। यहाँ मुख्य रूप से लाइमस्टोन, डोलोमाइट, सैंडस्टोन, क्ले, ग्रेनाइट आदि पाए जाते हैं।

खनिजप्रमुख क्षेत्र/उपयोग
लाइमस्टोनखानपुर, अकलेरा – सीमेंट उद्योग
डोलोमाइटबकानी, पिड़ावा – भवन निर्माण
सैंडस्टोनझालावाड़, गंगधार – भवन निर्माण
क्लेभवानीमंडी, खानपुर – ईंट, टाइल्स
ग्रेनाइटगंगधार – सजावटी पत्थर

आर्थिक स्थिति

झालावाड़ की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। यहाँ की प्रमुख फसलें गेहूं, सोयाबीन, चना, सरसों, मक्का, तिलहन आदि हैं।
सिंचाई के लिए जिले में काली सिंध बांध, चंद्रभागा बांध, आहू परियोजना जैसी प्रमुख परियोजनाएँ हैं।
झालावाड़ को संतरे की खेती के लिए भी जाना जाता है, यहाँ के संतरे देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं।

जनसंख्या एवं सामाजिक संरचना

2011 की जनगणना के अनुसार, झालावाड़ जिले की कुल जनसंख्या 14,11,129 थी।
जनसंख्या घनत्व 227 व्यक्ति/वर्ग किमी है।
लिंगानुपात 945 (1000 पुरुषों पर 945 महिलाएँ) और साक्षरता दर 61.5% है।
यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ भील, मीणा, कंजर आदि हैं।

वर्षकुल जनसंख्याजनसंख्या घनत्वलिंगानुपातसाक्षरता दर (%)
201114,11,12922794561.5

प्रशासनिक व्यवस्था

प्रशासनिक इकाईसंख्या/विशेषता
तहसीलें8
ग्राम पंचायतें250
गाँव1,100
नगर परिषद1 (झालावाड़)
नगर पालिकाएँ5

प्रमुख ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल

1. झालावाड़ किला (गढ़ पैलेस)

2. भवानी नाट्यशाला

3. गागरोन किला

4. चंद्रभागा मंदिर

5. रेणुका सागर झील

6. काली सिंध बांध

7. सुंढ्या जलप्रपात

8. डग

वन्य जीव अभयारण्य एवं पर्यटन

संस्कृति, कला एवं उत्सव

झालावाड़ की संस्कृति में राजस्थानी लोक संगीत, नृत्य, रंग-बिरंगे वस्त्र, लोक चित्रकला और त्योहार प्रमुख हैं।
यहाँ होली, दीपावली, गणगौर, तीज, गंगौर, मकर संक्रांति आदि पारंपरिक उत्सव हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।
झालावाड़ी चित्रकला और भित्तिचित्र यहाँ की विशेष पहचान है।

झालावाड़ के मुख्य तथ्य

विषयविवरण
क्षेत्रफल6,219 वर्ग किमी
जनसंख्या (2011)14,11,129
जनसंख्या घनत्व227 व्यक्ति/वर्ग किमी
लिंगानुपात945
साक्षरता दर61.5%
प्रमुख नदियाँचंबल, काली सिंध, पार्वती, आहू
प्रमुख स्थलगागरोन किला, गढ़ पैलेस, भवानी नाट्यशाला, चंद्रभागा मंदिर, रेणुका सागर झील
प्रमुख मेलेगागरोन मेला, चंद्रभागा मेला
खनिजलाइमस्टोन, डोलोमाइट, सैंडस्टोन, ग्रेनाइट

झालावाड़ जिला अपनी हरितिमा, ऐतिहासिक विरासत, स्थापत्य कला, प्राकृतिक सौंदर्य, कृषि, खनिज संपदा और जीवंत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के किले, मंदिर, झीलें, अभयारण्य, मेले और लोक परंपराएँ न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। झालावाड़ का अध्ययन प्रतियोगी परीक्षाओं, सामान्य ज्ञान और राजस्थान की सांस्कृतिक समझ के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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