झालावाड़ राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी छोर पर स्थित एक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक दृष्टि से समृद्ध जिला है। यह जिला अपनी हरितिमा, जलवायु, ऐतिहासिक दुर्गों, मंदिरों, दर्शनीय झीलों और वन्य जीव अभयारण्यों के लिए प्रसिद्ध है। झालावाड़ को राजस्थान का चेरापूंजी भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ सबसे अधिक वर्षा होती है। यहाँ की संस्कृति, स्थापत्य और प्राकृतिक स्थल इसे राज्य के अन्य जिलों से अलग पहचान देते हैं।
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स्थान, क्षेत्रफल एवं प्रशासन
- झालावाड़ जिला 24°26′ से 24°52′ उत्तर अक्षांश और 75°27′ से 76°56′ पूर्व देशांतर के बीच स्थित है।
- उत्तर में कोटा, दक्षिण में मध्यप्रदेश, पश्चिम में बारां और पूर्व में मध्यप्रदेश की सीमा से घिरा है।
- कुल क्षेत्रफल 6,219 वर्ग किमी है।
- प्रशासनिक दृष्टि से जिले को 8 तहसीलों में विभाजित किया गया है।
तहसील का नाम | मुख्यालय | प्रशासनिक विशेषता |
---|---|---|
झालावाड़ | झालावाड़ | जिला मुख्यालय, प्रशासनिक केंद्र |
अकलेरा | अकलेरा | कृषि एवं व्यापारिक केंद्र |
पिड़ावा | पिड़ावा | मध्यप्रदेश सीमा, ग्रामीण क्षेत्र |
गंगधार | गंगधार | ऐतिहासिक स्थल, ग्रामीण क्षेत्र |
भवानीमंडी | भवानीमंडी | रेलवे जंक्शन, व्यापारिक केंद्र |
खानपुर | खानपुर | कृषि प्रधान क्षेत्र |
रटलाई | रटलाई | ग्रामीण क्षेत्र |
बकानी | बकानी | कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र |
झालावाड़ का इतिहास
झालावाड़ का इतिहास 19वीं सदी से जुड़ा है। 1838 ई. में कोटा राज्य से अलग होकर झालावाड़ राज्य की स्थापना हुई। इस राज्य के संस्थापक झाला जाति के महाराज राणा जालिम सिंह थे, जिनके नाम पर जिले का नाम पड़ा।
झालावाड़ के शासक झाला राजपूत वंश के थे, जिनका मूल गुजरात के हलवद से था।
ब्रिटिश काल में झालावाड़ एक स्वतंत्र रियासत रहा और 1948 में राजस्थान राज्य में विलीन हुआ।
प्रमुख शासक व उपलब्धियाँ
शासक का नाम | शासन काल/विशेषता | उपलब्धि/महत्व |
---|---|---|
महाराज राणा जालिम सिंह | 1838-1875 | झालावाड़ राज्य की स्थापना |
महाराज राणा जले सिंह | 1875-1899 | प्रशासनिक सुधार |
महाराज राणा भवानी सिंह | 1899-1929 | शिक्षा, स्वास्थ्य में विकास |
महाराज राणा हरि सिंह | 1929-1948 | भारत में विलय |
भूगोल एवं जलवायु
झालावाड़ का भूगोल मालवा पठार के विस्तार में आता है। यहाँ की भूमि उपजाऊ, काली मिट्टी (रेगुर) और लाल बलुई मिट्टी की प्रधानता लिए हुए है।
जिले में चंबल, काली सिंध, पार्वती, उजाड़, आहू और उजैन प्रमुख नदियाँ हैं, जो सिंचाई और जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत हैं।
प्रमुख नदी | विशेषता |
---|---|
चंबल | उत्तर-पश्चिमी सीमा बनाती है |
काली सिंध | जिले के मध्य बहती है |
पार्वती | दक्षिण-पूर्वी भाग में |
आहू | उपनदी, सिंचाई में सहायक |
- यहाँ की जलवायु राजस्थान के अन्य भागों की तुलना में अधिक आर्द्र और समशीतोष्ण है।
- वार्षिक औसत वर्षा लगभग 943 मिमी है, जो राज्य में सर्वाधिक है।
- तापमान: ग्रीष्म में अधिकतम 45°C, शीत में न्यूनतम 8°C तक जाता है।
खनिज संपदा
झालावाड़ जिला खनिज संसाधनों के लिए भी जाना जाता है। यहाँ मुख्य रूप से लाइमस्टोन, डोलोमाइट, सैंडस्टोन, क्ले, ग्रेनाइट आदि पाए जाते हैं।
खनिज | प्रमुख क्षेत्र/उपयोग |
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लाइमस्टोन | खानपुर, अकलेरा – सीमेंट उद्योग |
डोलोमाइट | बकानी, पिड़ावा – भवन निर्माण |
सैंडस्टोन | झालावाड़, गंगधार – भवन निर्माण |
क्ले | भवानीमंडी, खानपुर – ईंट, टाइल्स |
ग्रेनाइट | गंगधार – सजावटी पत्थर |
आर्थिक स्थिति
झालावाड़ की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। यहाँ की प्रमुख फसलें गेहूं, सोयाबीन, चना, सरसों, मक्का, तिलहन आदि हैं।
सिंचाई के लिए जिले में काली सिंध बांध, चंद्रभागा बांध, आहू परियोजना जैसी प्रमुख परियोजनाएँ हैं।
झालावाड़ को संतरे की खेती के लिए भी जाना जाता है, यहाँ के संतरे देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं।
जनसंख्या एवं सामाजिक संरचना
2011 की जनगणना के अनुसार, झालावाड़ जिले की कुल जनसंख्या 14,11,129 थी।
जनसंख्या घनत्व 227 व्यक्ति/वर्ग किमी है।
लिंगानुपात 945 (1000 पुरुषों पर 945 महिलाएँ) और साक्षरता दर 61.5% है।
यहाँ की प्रमुख जनजातियाँ भील, मीणा, कंजर आदि हैं।
वर्ष | कुल जनसंख्या | जनसंख्या घनत्व | लिंगानुपात | साक्षरता दर (%) |
---|---|---|---|---|
2011 | 14,11,129 | 227 | 945 | 61.5 |
प्रशासनिक व्यवस्था
- जिला मुख्यालय: झालावाड़ शहर।
- 8 तहसीलें: झालावाड़, अकलेरा, पिड़ावा, गंगधार, भवानीमंडी, खानपुर, रटलाई, बकानी।
- 1 नगर परिषद (झालावाड़), 5 नगर पालिकाएँ (अकलेरा, भवानीमंडी, पिड़ावा, खानपुर, गंगधार)।
- 1,100 गाँव, 250 ग्राम पंचायतें।
प्रशासनिक इकाई | संख्या/विशेषता |
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तहसीलें | 8 |
ग्राम पंचायतें | 250 |
गाँव | 1,100 |
नगर परिषद | 1 (झालावाड़) |
नगर पालिकाएँ | 5 |
प्रमुख ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल
1. झालावाड़ किला (गढ़ पैलेस)
- 1838 में महाराज राणा जालिम सिंह द्वारा निर्मित।
- राजसी वास्तुकला, भित्तिचित्र, रंगमहल, जनाना महल।
2. भवानी नाट्यशाला
- 1921 में महाराज भवानी सिंह द्वारा बनवाया गया।
- भारत की सबसे प्राचीन थिएटर इमारतों में एक।
3. गागरोन किला
- विश्व धरोहर स्थल (UNESCO)।
- चंबल और आहू नदी के संगम पर स्थित, जल दुर्ग।
- प्राचीन जौहर स्थली।
4. चंद्रभागा मंदिर
- 7वीं-8वीं सदी के प्राचीन मंदिर, चंद्रभागा नदी किनारे।
- वास्तुकला और मूर्तिकला का अद्भुत उदाहरण।
5. रेणुका सागर झील
- झालावाड़ शहर के निकट, सुंदर झील, नौका विहार।
6. काली सिंध बांध
- जलाशय, सिंचाई परियोजना, पर्यटन स्थल।
7. सुंढ्या जलप्रपात
- गंगधार क्षेत्र में स्थित, प्राकृतिक सौंदर्य का केंद्र।
8. डग
- ऐतिहासिक नगर, जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध।
वन्य जीव अभयारण्य एवं पर्यटन
- डारनिया अभयारण्य: चंबल नदी के किनारे, मगरमच्छ, घड़ियाल, कछुए।
- गागरोन अभयारण्य: पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ, प्राकृतिक सौंदर्य।
- सुंढ्या जलप्रपात: मानसून में अत्यंत आकर्षक।
संस्कृति, कला एवं उत्सव
झालावाड़ की संस्कृति में राजस्थानी लोक संगीत, नृत्य, रंग-बिरंगे वस्त्र, लोक चित्रकला और त्योहार प्रमुख हैं।
यहाँ होली, दीपावली, गणगौर, तीज, गंगौर, मकर संक्रांति आदि पारंपरिक उत्सव हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं।
झालावाड़ी चित्रकला और भित्तिचित्र यहाँ की विशेष पहचान है।
झालावाड़ के मुख्य तथ्य
विषय | विवरण |
---|---|
क्षेत्रफल | 6,219 वर्ग किमी |
जनसंख्या (2011) | 14,11,129 |
जनसंख्या घनत्व | 227 व्यक्ति/वर्ग किमी |
लिंगानुपात | 945 |
साक्षरता दर | 61.5% |
प्रमुख नदियाँ | चंबल, काली सिंध, पार्वती, आहू |
प्रमुख स्थल | गागरोन किला, गढ़ पैलेस, भवानी नाट्यशाला, चंद्रभागा मंदिर, रेणुका सागर झील |
प्रमुख मेले | गागरोन मेला, चंद्रभागा मेला |
खनिज | लाइमस्टोन, डोलोमाइट, सैंडस्टोन, ग्रेनाइट |
झालावाड़ जिला अपनी हरितिमा, ऐतिहासिक विरासत, स्थापत्य कला, प्राकृतिक सौंदर्य, कृषि, खनिज संपदा और जीवंत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के किले, मंदिर, झीलें, अभयारण्य, मेले और लोक परंपराएँ न केवल राजस्थान, बल्कि पूरे भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं। झालावाड़ का अध्ययन प्रतियोगी परीक्षाओं, सामान्य ज्ञान और राजस्थान की सांस्कृतिक समझ के लिए अत्यंत आवश्यक है।