मेवाड़ चित्रशैली: इतिहास, विशेषताएँ और विकास

By RR Classes

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मेवाड़ चित्रशैली (Mewar Painting Style) राजस्थान की सबसे प्राचीन और मौलिक चित्रशैली है, जिसने न केवल क्षेत्रीय कला को बल्कि सम्पूर्ण भारतीय चित्रकला को नई दिशा दी। यह शैली भित्तिचित्रों, पांडुलिपि चित्रण और लघु चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी जड़ें 13वीं सदी तक जाती हैं और इसका चरमोत्कर्ष 17वीं-18वीं सदी में हुआ । इस लेख में हम मेवाड़ चित्रशैली के ऐतिहासिक विकास, प्रमुख चित्रकार, विषयवस्तु, रंग संयोजन, प्रमुख कृतियाँ और इसकी विशेषताओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

मेवाड़ चित्रशैली का ऐतिहासिक विकास

काल/शासकप्रमुख योगदान/घटनावर्ष
बापा रावलमेवाड़ राज्य की स्थापना728 ई.
महाराणा कुम्भाचित्रकला, स्थापत्य, संगीत में रुचि, प्रारंभिक संरक्षण1433-1468
महाराणा मोकलसुपासनाचरियम चित्रण1423 ई.
महाराणा प्रतापढोलामारू ग्रंथ का चित्रण1592 ई.
महाराणा अमरसिंह प्रथमरागमाला चित्रण, शैली का उत्कर्ष1597-1620
महाराणा जगत सिंह प्रथमशैली का स्वर्णकाल1628-1652

मेवाड़ शैली का प्रारंभिक विकास गुर्जर और जैन चित्रशैली के प्रभाव में हुआ। प्रारंभिक उदाहरणों में श्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णी (1260 ई.), कल्पसूत्र (1418 ई.), सुपासनाचरियम (1423 ई.) आदि शामिल हैं । महाराणा कुम्भा के समय से इस शैली को राजाश्रय मिला और आगे चलकर यह राजस्थानी चित्रकला की आधारशिला बनी।


मेवाड़ चित्रशैली के अन्य नाम

नामकारण/संदर्भ
मेदपाटमेव जाति की अधिकता
उदसरभीलों का मुख्य क्षेत्र

मुख्य विषयवस्तु

मेवाड़ चित्रशैली की विषयवस्तु में धार्मिकता, भक्ति, सामाजिक जीवन, प्रकृति और राजसी गतिविधियाँ प्रमुख हैं। इसमें रामायण, महाभारत, भागवत, गीत गोविंद, पंचतंत्र आदि ग्रंथों के दृश्य, रागमाला, कृष्ण-लीला, शिकार, उत्सव, दरबार, प्रेम, वीरता आदि का चित्रण मिलता है ।

विषयउदाहरण/वर्णन
धार्मिककृष्ण-लीला, रामायण, भागवत, गीत गोविंद
सामाजिकदरबारी दृश्य, उत्सव, शिकार, ग्रामीण जीवन
प्रकृतिवर्षा, बाग-बगीचे, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे
लोककथाएँढोलामारू, पंचतंत्र, कलिला-दमना

प्रमुख चित्रकार एवं कृतियाँ

चित्रकारकृति/योगदानकाल
कमलचंद्रश्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णी1260 ई.
भीखमरसिक काष्टककुम्भा काल
नानारामभागवत पुराण चित्रण, परिजात अवतरण1540 ई.
हीरानंदसुपासनाचरियम चित्रण1423 ई.
साहबदीनश्रीमद्भागवत, भीम सिंह का जुलूस, मुग्धा नायिका1648 ई.

मेवाड़ चित्रशैली की प्रमुख विशेषताएँ

विशेषताविवरण
भित्तिचित्र परंपरामहलों, हवेलियों, मंदिरों की दीवारों पर चित्रण
रंग संयोजनलाल, पीला, हरा, नीला, सफेद, काला; स्वर्ण का सीमित प्रयोग
सजीवता व प्रभावमुख्य पात्रों को उभारने के लिए भवनों, वस्त्रों, आभूषणों का सजीव चित्रण
भावनात्मकताप्रेम, भक्ति, वीरता, करुणा, श्रृंगार आदि का सुंदर प्रस्तुतीकरण
रेखाओं की स्पष्टतामोटी, स्पष्ट रेखाएँ; आकृतियों में सादगी व सहजता
प्रकृति का चित्रणपशु, पक्षी, पेड़-पौधे, जल, पर्वत आदि का कलात्मक सरलीकरण
स्थानीय पहनावानारी पात्रों में सादगी, पुरुष पात्रों में राजसी परिधान
मुगल प्रभाव17वीं सदी के बाद चित्रों में बारीकी, सूक्ष्मता, परिष्कार
मेवाड़ चित्रशैली: इतिहास, विशेषताएँ और विकास

रंग संयोजन एवं सामग्री

रंग/सामग्रीस्रोत/प्रयोग
लालगेरू, सिंदूर
पीलाहल्दी, पीली मिट्टी
हरापत्तियाँ, हरा पत्थर
नीलानील, लैपिस लाजुली
कालाकोयला, कालिख
सफेदचूना, कंकड़
स्वर्ण/चाँदीआभूषण, वस्त्रों के गोटे, विशेष चित्रों में
माध्यमकागज, कपड़ा, दीवार, ताड़पत्र

मेवाड़ शैली की प्रमुख कृतियाँ

कृति/ग्रंथचित्रकार/स्थानवर्ष/कालविशेषता
श्रावक प्रतिक्रमणकमलचंद्र, आहड़1260 ई.प्रारंभिक जैन ग्रंथ चित्रण
कल्पसूत्रसोमेश्वर, मोहवाड़1418 ई.जैन ग्रंथ चित्रण
सुपासनाचरियमहीरानंद, दिलवाड़ा1423 ई.भित्तिचित्र
ढोलामारूमहाराणा प्रताप काल1592 ई.लोककथा चित्रण
श्रीमद्भागवतसाहबदीन, उदयपुर1648 ई.कृष्ण-लीला चित्रण
रागमालानिसारदीन, चावंड1605 ई.संगीत विषयक चित्र
बसंत रागिनीऋतु चित्रण
भीम सिंह का जुलूससाहबदीनराजसी जीवन

भित्तिचित्र और लघु चित्र

  • भित्तिचित्र : महलों (जगमंदिर, मर्दाना महल), हवेलियों (बापना, कोठारी, गणेशलाल) में सुंदर भित्तिचित्र।
  • लघु चित्र : पांडुलिपियों, ग्रंथों, कागज पर सूक्ष्म चित्रण।

मेवाड़ चित्रशैली में सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव

  • धार्मिकता और भक्ति का गहरा प्रभाव।
  • समाज की मनोदशाओं (प्रेम, करुणा, वीरता, श्रृंगार) का सुंदर चित्रण ।
  • नारी पात्रों में सादगी, पुरुष पात्रों में शौर्य और राजसी ठाट।
  • प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता – पशु, पक्षी, वृक्ष, जल आदि का कलात्मक उपयोग।
  • लोककथाओं, लोकजीवन और त्योहारों का चित्रण।

मुगल प्रभाव और नवाचार

  • 17वीं सदी के बाद मेवाड़ चित्रशैली में मुगल शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखता है, जिससे चित्रों में सूक्ष्मता, बारीकी और रंगों की विविधता आई ।
  • कलाकारों ने मनोवैज्ञानिक और प्रतीकात्मक रंग प्रयोग शुरू किया।
  • परंपरा और नवाचार का सुंदर समन्वय।

महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Facts) – परीक्षा दृष्टि से

बिंदुविवरण
प्रारंभिक चित्रणश्रावक प्रतिक्रमण सूत्रचूर्णी (1260 ई.)
शैली का स्वर्णकालमहाराणा जगत सिंह प्रथम (1628-1652)
प्रमुख चित्रकारकमलचंद्र, भीखम, साहबदीन, नानाराम
प्रमुख विषयकृष्ण-लीला, रागमाला, ढोलामारू, रामायण
रंगों की प्रधानतालाल, पीला, हरा, नीला, सफेद, काला
भित्तिचित्र स्थलजगमंदिर, मर्दाना महल, हवेलियाँ

संरक्षण और वर्तमान स्थिति

  • कई प्राचीन चित्र संग्रहालयों, महलों, हवेलियों में संरक्षित हैं।
  • आधुनिक कलाकार भी पारंपरिक शैली को अपनाकर नवाचार कर रहे हैं।
  • संरक्षण के लिए सरकारी व निजी प्रयास जारी।

मेवाड़ चित्रशैली ने न केवल राजस्थान, बल्कि भारतीय चित्रकला को अद्वितीय पहचान दी। इसकी धार्मिकता, सामाजिकता, रंग संयोजन, विषयवस्तु और भावनात्मकता आज भी कला प्रेमियों को आकर्षित करती है। यह शैली न केवल अतीत की धरोहर है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए भी प्रेरणा स्रोत है।


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