राजस्थान का स्वतंत्रता संग्राम केवल राजाओं, रियासतों और अंग्रेज़ों के बीच की राजनीति तक सीमित नहीं था। यहाँ की आम जनता, किसान, मजदूर, व्यापारी, शिक्षक, विद्यार्थी और बुद्धिजीवी भी स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए संघर्षरत रहे। इस संघर्ष का सबसे महत्वपूर्ण और संगठित रूप था – प्रजामंडल आंदोलन। प्रजामंडल शब्द का अर्थ है – “जनता का संगठन”। राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रजामंडल संगठनों की स्थापना 1930 के दशक में हुई, जिनका उद्देश्य जनता के अधिकारों की रक्षा, लोकतांत्रिक शासन की स्थापना और अंग्रेज़ी साम्राज्य तथा राजशाही के अन्यायपूर्ण शासन का विरोध करना था।
Page Contents
यह लेख राजस्थान के प्रमुख प्रजामंडलों का विस्तार से अध्ययन प्रस्तुत करता है, जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रजामंडल आंदोलन का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ब्रिटिश शासन और रियासतों की स्थिति
1857 के बाद राजस्थान की रियासतें ब्रिटिश अधीनस्थ रहीं।
जनता के अधिकार सीमित थे, शोषण, कर, जबरन श्रम, सामाजिक कुरीतियाँ, शिक्षा और स्वास्थ्य की उपेक्षा आम थी।
रियासतों के शासक अंग्रेज़ों के प्रति वफादार थे, जनता की आवाज़ दबाई जाती थी।
राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव
1920 के बाद राष्ट्रीय आंदोलन का प्रभाव राजस्थान की रियासतों में भी फैलने लगा।
गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन की लहर राजस्थान में भी पहुँची।
राजस्थान के युवाओं, शिक्षकों और बुद्धिजीवियों ने स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए प्रजामंडल संगठनों का गठन किया।
प्रजामंडल आंदोलन के उद्देश्य
जनता के अधिकारों की रक्षा
लोकतांत्रिक शासन की स्थापना
रियासतों में प्रशासनिक सुधार
शोषण, अत्याचार, कर वृद्धि, जबरन श्रम, सामाजिक कुरीतियों का विरोध
शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करना
राजस्थान के प्रमुख प्रजामंडल
राजस्थान की लगभग सभी रियासतों में प्रजामंडल संगठनों की स्थापना हुई। नीचे तालिका में प्रमुख प्रजामंडलों का सारांश प्रस्तुत है:
क्रम
प्रजामंडल का नाम
स्थापना वर्ष
प्रमुख संस्थापक / नेता
मुख्य केंद्र
1
मेवाड़ प्रजामंडल
1938
माणिक्यलाल वर्मा, भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी
उदयपुर
2
जयपुर प्रजामंडल
1931
हीरालाल शास्त्री, जमनालाल बजाज
जयपुर
3
बीकानेर प्रजामंडल
1937
हरीशंकर व्यास, मुरलीधर व्यास
बीकानेर
4
जोधपुर प्रजामंडल
1938
बालमुकुंद बिस्सा, रामेश्वर दत्त जोशी
जोधपुर
5
बूंदी प्रजामंडल
1939
रामेश्वर दत्त जोशी, हरिशंकर व्यास
बूंदी
6
कोटा प्रजामंडल
1938
नन्दलाल जोशी, बालमुकुंद बिस्सा
कोटा
7
अलवर प्रजामंडल
1938
बद्रीलाल शर्मा, रामसिंह
अलवर
8
भरतपुर प्रजामंडल
1939
रामसिंह, बद्रीलाल शर्मा
भरतपुर
9
सिरोही प्रजामंडल
1939
चन्द्रसिंह, हरिशंकर व्यास
सिरोही
10
डूंगरपुर प्रजामंडल
1945
विजय सिंह पथिक, रामनारायण चौधरी
डूंगरपुर
11
झालावाड़ प्रजामंडल
1939
रामेश्वर दत्त जोशी, नन्दलाल जोशी
झालावाड़
12
टोंक प्रजामंडल
1946
हसन अली, अब्दुल गफ्फार
टोंक
प्रमुख प्रजामंडलों का विस्तृत अध्ययन
1. मेवाड़ प्रजामंडल
स्थापना एवं पृष्ठभूमि
स्थापना वर्ष: 1938
प्रमुख संस्थापक: माणिक्यलाल वर्मा, भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी, गिरधारीलाल व्यास
मुख्य केंद्र: उदयपुर
लक्ष्य: मेवाड़ रियासत में जनता के अधिकारों की रक्षा, प्रशासनिक सुधार, सामाजिक कुरीतियों का विरोध।
मुख्य गतिविधियाँ
जनता को संगठित करना, सभाएँ, रैलियाँ, जनजागरण।
किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों को आंदोलन में जोड़ना।
प्रशासनिक सुधारों की माँग, प्रेस की स्वतंत्रता की माँग।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सक्रिय भूमिका।
महत्वपूर्ण आंदोलन
1942 का मेवाड़ सत्याग्रह – बड़ी संख्या में गिरफ्तारियाँ, दमन।
1946 में प्रजामंडल के नेताओं की गिरफ्तारी।
1947 में लोकतांत्रिक आंदोलन की सफलता – प्रतिनिधि सभा की स्थापना।
2. जयपुर प्रजामंडल
स्थापना एवं पृष्ठभूमि
स्थापना वर्ष: 1931
प्रमुख नेता: हीरालाल शास्त्री, जमनालाल बजाज, हरिभाऊ उपाध्याय
मुख्य केंद्र: जयपुर
विशेषता: राजस्थान का सबसे पुराना और सबसे संगठित प्रजामंडल।
मुख्य गतिविधियाँ
जयपुर राज्य में प्रशासनिक सुधार, शिक्षा, प्रेस स्वतंत्रता की माँग।
किसानों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा।
1938 में जयपुर राज्य कांग्रेस का गठन।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सक्रिय भागीदारी।
महत्वपूर्ण आंदोलन
1939 का जयपुर सत्याग्रह – दमन, गिरफ्तारियाँ।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन – नेताओं की गिरफ्तारी।
1946 में प्रतिनिधि सभा की स्थापना।
3. बीकानेर प्रजामंडल
स्थापना एवं पृष्ठभूमि
स्थापना वर्ष: 1937
प्रमुख नेता: हरीशंकर व्यास, मुरलीधर व्यास
मुख्य केंद्र: बीकानेर
लक्ष्य: बीकानेर रियासत में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना।
मुख्य गतिविधियाँ
जनता को संगठित करना, प्रशासनिक सुधारों की माँग।
किसानों, मजदूरों के अधिकारों की रक्षा।
प्रेस की स्वतंत्रता, शिक्षा सुधार की माँग।
महत्वपूर्ण आंदोलन
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन – बीकानेर में भी सक्रिय आंदोलन।
1946 में प्रतिनिधि सभा की स्थापना।
4. जोधपुर प्रजामंडल
स्थापना एवं पृष्ठभूमि
स्थापना वर्ष: 1938
प्रमुख नेता: बालमुकुंद बिस्सा, रामेश्वर दत्त जोशी
मुख्य केंद्र: जोधपुर
लक्ष्य: जोधपुर रियासत में जनता के अधिकारों की रक्षा।
रियासतों में प्रशासनिक सुधार, प्रतिनिधि सभा की स्थापना
राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूती
राजस्थान के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका
प्रजामंडल आंदोलन के प्रमुख आंदोलन एवं घटनाएँ
वर्ष
आंदोलन/घटना
संबंधित प्रजामंडल
प्रमुख विशेषता/परिणाम
1938
मेवाड़ सत्याग्रह
मेवाड़
जनता का दमन, गिरफ्तारियाँ
1939
जयपुर सत्याग्रह
जयपुर
प्रशासनिक सुधार की माँग, दमन
1942
भारत छोड़ो आंदोलन
सभी
गिरफ्तारियाँ, दमन, आंदोलन तेज
1946
प्रतिनिधि सभा की स्थापना
अधिकांश प्रजामंडल
लोकतांत्रिक शासन की शुरुआत
1947
राजस्थान के एकीकरण में योगदान
सभी
एकीकरण प्रक्रिया में सहयोग
प्रजामंडल आंदोलन में महिलाओं की भूमिका
महिलाओं ने सभाओं, जुलूसों, सत्याग्रहों में भाग लिया।
प्रमुख महिला नेता: विद्यावती वर्मा, कमला देवी, लक्ष्मी देवी आदि।
महिलाओं की भागीदारी ने आंदोलन को जन आंदोलन का स्वरूप दिया।
प्रजामंडल आंदोलन के प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ
पत्र/पत्रिका
प्रकाशन वर्ष
संपादक/संस्थापक
भूमिका/विशेषता
राजस्थान केसरी
1934
माणिक्यलाल वर्मा
मेवाड़ में जनजागरण, आंदोलन का प्रचार
नवजीवन
1935
हीरालाल शास्त्री
जयपुर में आंदोलन का प्रचार
प्रजामंडल पत्रिका
1938
विभिन्न
सभी प्रजामंडलों की गतिविधियाँ
राजस्थान संदेश
1940
जमनालाल बजाज
आंदोलन की जानकारी, जनजागरण
प्रजामंडल आंदोलन और किसान आंदोलन
प्रजामंडल आंदोलन ने किसानों को शोषण, कर, बेगार, जबरन श्रम के खिलाफ संगठित किया।
प्रमुख किसान आंदोलन: बीजोलिया किसान आंदोलन, मेवाड़ किसान आंदोलन, बूँदी किसान आंदोलन।
प्रजामंडल नेताओं ने किसानों के हक के लिए संघर्ष किया।
प्रजामंडल आंदोलन और आदिवासी आंदोलन
डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सिरोही आदि में आदिवासी अधिकारों के लिए आंदोलन।
विजय सिंह पथिक, रामनारायण चौधरी जैसे नेताओं ने आदिवासी समाज को संगठित किया।
शिक्षा, स्वास्थ्य, भूमि अधिकार, सामाजिक सुधार की माँग।
प्रजामंडल आंदोलन और राजस्थान का एकीकरण
प्रजामंडल आंदोलन ने रियासतों के एकीकरण की माँग को बल दिया।
लोकतांत्रिक शासन, प्रतिनिधि सभा, प्रशासनिक सुधार के लिए संघर्ष।
एकीकरण के बाद राजस्थान में लोकतांत्रिक शासन की स्थापना में योगदान।
प्रजामंडल आंदोलन के प्रमुख दमन और संघर्ष
वर्ष
घटना/दमन
संबंधित प्रजामंडल
परिणाम/प्रभाव
1938
मेवाड़ में दमन, गिरफ्तारियाँ
मेवाड़
आंदोलन तेज, राष्ट्रीय समर्थन
1939
जयपुर में दमन, गिरफ्तारियाँ
जयपुर
आंदोलन का विस्तार
1942
भारत छोड़ो आंदोलन में दमन
सभी
गिरफ्तारियाँ, आंदोलन तेज
1946
नेताओं की गिरफ्तारी
अधिकांश
प्रतिनिधि सभा की स्थापना
प्रजामंडल आंदोलन की सीमाएँ और चुनौतियाँ
रियासतों के शासकों द्वारा दमन, गिरफ्तारियाँ, यातनाएँ।
अंग्रेज़ी सरकार का सहयोग, आंदोलनकारियों पर मुकदमे।
सीमित संसाधन, जनजागरण में कठिनाई।
कुछ क्षेत्रों में जनता की उदासीनता।
प्रजामंडल आंदोलन का ऐतिहासिक महत्व
राजस्थान में लोकतांत्रिक चेतना का विकास।
राष्ट्रीय आंदोलन को ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों तक पहुँचाया।
शोषण, अत्याचार, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ संगठित संघर्ष।
राजस्थान के एकीकरण और लोकतांत्रिक शासन की नींव रखी।
प्रजामंडल आंदोलन के प्रमुख तथ्य (Quick Revision Table)
बिंदु
विवरण
सबसे पुराना प्रजामंडल
जयपुर प्रजामंडल (1931)
सबसे सक्रिय प्रजामंडल
मेवाड़, जयपुर, बीकानेर, जोधपुर
प्रमुख नेता
माणिक्यलाल वर्मा, हीरालाल शास्त्री, पथिक
महिलाओं की भूमिका
विद्यावती वर्मा, कमला देवी, लक्ष्मी देवी
प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ
राजस्थान केसरी, नवजीवन, प्रजामंडल पत्रिका
प्रमुख आंदोलन
1938-42 सत्याग्रह, 1946 प्रतिनिधि सभा
एकीकरण में भूमिका
सभी प्रजामंडलों का योगदान
प्रजामंडल आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न (MCQ/Short Notes)
राजस्थान का सबसे पहला प्रजामंडल कौन-सा था?
उत्तर: जयपुर प्रजामंडल (1931)
मेवाड़ प्रजामंडल के संस्थापक कौन थे?
उत्तर: माणिक्यलाल वर्मा, भूपेन्द्रनाथ त्रिवेदी
डूंगरपुर प्रजामंडल के प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर: विजय सिंह पथिक, रामनारायण चौधरी
प्रजामंडल आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: जनता के अधिकारों की रक्षा, लोकतांत्रिक शासन की स्थापना
प्रजामंडल आंदोलन के दौरान प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ कौन-सी थीं?
उत्तर: राजस्थान केसरी, नवजीवन, प्रजामंडल पत्रिका
राजस्थान के प्रमुख प्रजामंडल न केवल राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे, बल्कि इन्होंने लोकतांत्रिक चेतना, सामाजिक सुधार, शिक्षा, प्रेस स्वतंत्रता, किसानों और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा, और राजस्थान के एकीकरण में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। इन प्रजामंडलों के संघर्ष और बलिदान ने राजस्थान को लोकतंत्र की ओर अग्रसर किया और आज भी ये संगठन प्रेरणा का स्रोत हैं।
यह लेख प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है और राजस्थान के इतिहास, समाज, राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम को समझने के लिए अनिवार्य है।