राजस्थान में रियासत काल के दौरान विभिन्न प्रकार के सिक्के प्रचलन में थे, जो न केवल आर्थिक लेनदेन का माध्यम थे, बल्कि तत्कालीन समाज, संस्कृति, राजनीति और कला का भी प्रतिबिंब थे। सिक्कों के अध्ययन को न्यूमिसमेटिक्स कहा जाता है, जो इतिहास के छिपे हुए पहलुओं को उजागर करने में मदद करता है। राजस्थान की विभिन्न रियासतों ने अपने विशिष्ट सिक्के जारी किए, जिनके माध्यम से हम उनकी आर्थिक समृद्धि, व्यापारिक संबंधों और सांस्कृतिक विविधता का अध्ययन कर सकते हैं।
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राजस्थान के सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व
राजपूताने की रियासतों के सिक्कों पर सर्वप्रथम व्यापक अध्ययन केब ने किया और 1893 ई. में “द करेंसीज ऑफ दि हिन्दू स्टेट्स ऑफ राजपूताना” नामक पुस्तक लिखी थी। यह पुस्तक राजस्थान के सिक्कों के अध्ययन का आधार मानी जाती है।
राजस्थान के विभिन्न भागों में प्राचीन काल से ही सिक्के प्रचलन में रहे हैं। प्राचीनतम सिक्के रैढ़ (टोंक) से प्राप्त हुए हैं, जहाँ डॉ. केदारनाथ पुरी की देखरेख में किए गए उत्खनन से भारत के प्राचीनतम सिक्के मिले हैं, जो एक ही स्थान से मिले सिक्कों की सबसे बड़ी संख्या है।
प्राचीन सिक्के: पंचमार्क/आहत सिक्के
पंचमार्क सिक्के
ऐसे सिक्के जिन पर किसी पशु-पक्षी, पेड़-पौधे का चित्र ठप्पा लगाकर अंकित किया गया हो, पंचमार्क सिक्के कहलाते हैं। ये भारत के सबसे प्राचीन सिक्के माने जाते हैं।
- पंचमार्क के प्रतीक: पेड़, सांड, मछली, अर्धचंद्र, हाथी।
- 1835 ईस्वी में सर्वप्रथम जेम्स प्रिंसेप ने इन्हें पंचमार्क नाम दिया।
- गुरारा गांव (सीकर) से 2744 पंचमार्क सिक्के प्राप्त हुए हैं।
- ठप्पा मारकर बनाए जाने के कारण इन्हें आहत मुद्रा भी कहा जाता है।
प्रमुख धातुओं के सिक्के
चांदी के सिक्के
- भारत में सर्वप्रथम चांदी के सिक्के शक शासकों (सीथियन) ने चलाए थे।
- रैढ़, विराटनगर से इंडो-सीथियन सिक्के मिले हैं, जिन पर राजा के चेहरे एवं अग्नि वेदिका का भद्दा रूप देखने को मिलता है, इसी कारण इन्हें गधिया सिक्का भी कहा जाता है।
- 1900 ईस्वी में ब्रिटिश काल में राजस्थान में चांदी के कलदार सिक्के प्रचलन में आए।
- जोधपुर टकसाल के चांदी के सिक्के विश्व प्रसिद्ध हैं।
सोने के सिक्के
- राजस्थान में सोने के सिक्के मुख्य रूप से विशेष अवसरों पर जारी किए जाते थे।
- चौहानों द्वारा जारी दीनार सोने का प्रमुख सिक्का था।
तांबे के सिक्के
- अधिकांश रियासतों में तांबे के सिक्के आम जनता के दैनिक व्यवहार के लिए प्रचलित थे।
- मेवाड़ में ढींगला, भिलाड़ी, कर्षापण, त्रिशूलिया जैसे तांबे के सिक्के प्रचलित थे।
प्रमुख रियासतों के सिक्के
1. जयपुर रियासत के सिक्के
- सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1728 ईस्वी में जयपुर में टकसाल की स्थापना की।
- राजपूताने में जयपुर पहला राज्य था जिसे मुगलों द्वारा स्वतंत्र टकसाल की स्थापना की अनुमति दी गई।
- जयपुर का सिरहडयोढी बाजार चांदी की टकसाल के नाम से प्रसिद्ध था।
- जयपुर में कछवाआ वंश के शासकों ने झाडशाही सिक्कों का प्रचलन किया।
- अन्य प्रचलित सिक्के: रसकपूर सिक्का, हाली सिक्का, मुहम्मदशाही।
2. मेवाड़ रियासत के सिक्के
- एलची: मेवाड़ की स्थानीय टकसालों में मुगलों का एलची सिक्का बनता था।
- मेवाड़ में चांदी का रूपक सिक्का चलता था।
- तांबे के ढींगला, भिलाड़ी, कर्षापण, त्रिशूलिया सिक्के चलते थे।
- मेवाड़ के स्वरूप सिंह ने सिक्कों पर “दोस्ती लंदन” लिखवाया।
- स्वरूपशाही और चांदोड़ी सिक्के मेवाड़ में प्रचलित थे।
3. बीकानेर के सिक्के
- बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने अपने सिक्कों पर “विक्टोरिया इंप्रेस” लिखवाया।
- बीकानेर में गजशाही नामक चांदी का सिक्का चलता था।
4. जोधपुर रियासत के सिक्के
- विजयशाही, लल्लूलिया, गधिया, भीमशाही, ढब्बूशाही, फदिया जोधपुर के प्रमुख सिक्के थे।
- जोधपुर टकसाल के सिक्के उच्च गुणवत्ता के लिए जाने जाते थे।
अन्य प्रमुख रियासतों के सिक्के
- चौहानों (अजमेर) के सिक्के: रूपक (चांदी का), दीनार (सोने का)
- प्रतिहारों के सिक्के: वराह, द्रम्म, विशोपक
- डूंगरपुर के सिक्के: उदयशाही, सालिमशाही
- बांसवाड़ा के सिक्के: लक्ष्मणशाही, सालिमशाही
- प्रतापगढ़ के सिक्के: आलमशाही, नया सालिमशाही
- बूंदी के सिक्के: रामशाही, चेहरेशाही, कटारशाही, ग्यारहसना
- कोटा के सिक्के: मदनशाही, गुमानशाही
- झालावाड़ के सिक्के: मदनशाही, पृथ्वीशाही
- अलवर के सिक्के: रावशाही, अखैशाही
- भरतपुर: चांदी का शाहआलम
- धौलपुर: तमंचाशाही
- जैसलमेर: अखैशाही/अशैशाही, मुहम्मदशाही (चांदी), डोडिया (तांबे का)
रियासतों के प्रमुख सिक्कों का तुलनात्मक अध्ययन
रियासत | प्रमुख सिक्के | धातु | विशेषता |
---|---|---|---|
जयपुर | झाडशाही, रसकपूर, हाली, मुहम्मदशाही | चांदी, तांबा | पहली स्वतंत्र टकसाल, सिरहडयोढी बाजार |
मेवाड़ | रूपक, एलची, स्वरूपशाही, चांदोड़ी | चांदी, तांबा | “दोस्ती लंदन” अंकित, त्रिशूलिया अंकन |
बीकानेर | गजशाही | चांदी | “विक्टोरिया इंप्रेस” अंकित |
जोधपुर | विजयशाही, लल्लूलिया, गधिया, भीमशाही | चांदी, तांबा | उच्च गुणवत्ता वाली टकसाल |
अलवर | रावशाही, अखैशाही | चांदी, तांबा | विशिष्ट डिजाइन |
विशिष्ट सिक्कों की पहचान और उनकी रियासतें
सिक्का | रियासत | विशेषता |
---|---|---|
गजशाही | बीकानेर | चांदी का सिक्का, हाथी का अंकन |
रावशाही | अलवर | राजा का नाम अंकित |
गुमानशाही | कोटा | राजा गुमान सिंह के नाम पर |
रामशाही | बूंदी | राजा राम सिंह के नाम पर |
स्वरूपशाही | मेवाड़ | महाराणा स्वरूप सिंह के नाम पर |
तमंचाशाही | धौलपुर | बंदूक के आकार का डिजाइन |
विजयशाही | जोधपुर | महाराजा विजय सिंह के नाम पर |
राजस्थान के सिक्कों की धातु और उनकी विशेषताएँ
धातु | प्रमुख सिक्के | विशेषताएँ |
---|---|---|
सोना | दीनार (चौहान) | विशेष अवसरों पर जारी, दुर्लभ, उच्च मूल्य |
चांदी | रूपक, गजशाही, झाडशाही, एलची | व्यापारिक लेनदेन, अंतरराज्यीय मान्यता |
तांबा | ढींगला, भिलाड़ी, कर्षापण, त्रिशूलिया | दैनिक उपयोग, स्थानीय बाजारों में प्रचलन |
मिश्रधातु | गधिया, डोडिया | कम लागत, आम जनता में प्रचलन |
सिक्कों से जुड़ी रोचक जानकारियाँ
- झाडशाही नाम का सिक्का जयपुर में चलता था, इसी नाम की एक प्रकार की बोली भी प्रचलित थी।
- जोधपुर के सिक्कों पर प्रायः “राम राज्य” अंकित होता था।
- मेवाड़ के महाराणा ने “दोस्ती लंदन” अंकित करके ब्रिटिश साम्राज्य से मित्रता का संकेत दिया।
- बीकानेर के महाराजा ने ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनका नाम सिक्कों पर अंकित करवाया।
स्मरणीय सूत्र (ट्रिक): विजय भारती जोधपुर के गैबी आजो रात अलवर में तमंचा से धोएंगे गुमान को उड़ा देंगे राम-2 कहते भागेगा बूंदी में मजा आयेगा सची में।
सिक्कों का संरक्षण और महत्व
राजस्थान के रियासत कालीन सिक्के हमारी सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर हैं। इन सिक्कों के माध्यम से न केवल तत्कालीन आर्थिक व्यवस्था का पता चलता है, बल्कि रियासतों के बीच संबंध, कला, संस्कृति, और राजनीतिक स्थिति का भी ज्ञान मिलता है।
वर्तमान में ये सिक्के विभिन्न संग्रहालयों में संरक्षित हैं जैसे:
- अल्बर्ट हॉल म्यूजियम, जयपुर
- गवर्नमेंट म्यूजियम, जोधपुर
- मेवाड़ राजकीय संग्रहालय, उदयपुर
निष्कर्ष
राजस्थान के रियासत कालीन सिक्के प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र की समृद्ध आर्थिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक रहे हैं। पंचमार्क सिक्कों से लेकर विभिन्न रियासतों के विशिष्ट सिक्कों तक, यह विविधता राजस्थान की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती है। प्रत्येक रियासत ने अपनी विशिष्ट मुद्रा प्रणाली विकसित की जो उनकी पहचान का प्रतीक बन गई।
इन सिक्कों का अध्ययन न केवल न्यूमिसमेटिक्स (मुद्राशास्त्र) के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी है। प्रत्येक रियासत के प्रमुख सिक्कों को याद रखने से इतिहास, कला और संस्कृति के क्षेत्र में हमारा ज्ञान समृद्ध होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- न्यूमिसमेटिक्स: सिक्कों का अध्ययन
- पंचमार्क सिक्के: भारत के प्राचीनतम सिक्के
- रैढ़ (टोंक): सबसे अधिक संख्या में प्राचीन सिक्के मिले
- जयपुर: पहली स्वतंत्र टकसाल वाली रियासत
- जोधपुर टकसाल: विश्व प्रसिद्ध चांदी के सिक्के
यह लेख राजस्थान के रियासत कालीन सिक्कों पर आधारित है और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।