राजस्थान की चित्रकला: परंपरा, शैलियाँ और विशेषताएँ (Study Notes)

By RR Classes

Updated on:

राजस्थान की चित्रकला भारतीय कला की अद्वितीय धरोहर है, जिसकी जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हैं। यहाँ की चित्रकला ने न केवल स्थानीय परंपराओं, धार्मिक भावनाओं और ऐतिहासिक घटनाओं को उकेरा, बल्कि भारतीय चित्रकला को भी नई दिशा दी। राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में विकसित चित्रशैलियाँ, रंगों की विविधता, विषयवस्तु की गहराई और शैलीगत विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध हैं ।

Page Contents

राजस्थान चित्रकला का ऐतिहासिक विकास

  • राजस्थान की चित्रकला का इतिहास 6ठी शताब्दी से मिलता है, जब मारू-गुर्जर शैली का विकास हुआ।
  • प्राचीन मंदिरों, जैन ग्रंथों और महलों की दीवारों पर चित्रित भित्तिचित्र इस परंपरा के प्रमाण हैं।
  • 15वीं-16वीं शताब्दी में जैन/गुजराती/अजन्ता शैली के प्रभाव से लघु चित्रकला का विकास हुआ ।
  • 17वीं-18वीं शताब्दी को राजस्थानी चित्रकला का स्वर्णकाल कहा जाता है।
  • मुगल प्रभाव के चलते चित्रकला में नवीनता और परिष्कार आया, लेकिन स्थानीय रंग भी बरकरार रहे ।

राजस्थान की चित्रकला के प्रमुख स्रोत

स्रोत/स्थानकाल/युगविशेषता
अजंता गुफाएँप्राचीनप्रारंभिक चित्रण परंपरा का प्रभाव
जैन ग्रंथमध्यकालीनलघु चित्रों का विकास
मंदिर भित्तिचित्रमध्यकालीन-आधुनिकधार्मिक विषयवस्तु, सजावटी चित्रण
महल भित्तिचित्रमध्यकालीन-आधुनिकदरबारी जीवन, प्रेम, शिकार, त्योहार

राजस्थान चित्रकला का वर्गीकरण

राजस्थान की चित्रकला को भौगोलिक और शैलीगत आधार पर विभाजित किया गया है। आनंद कुमार स्वामी ने 1916 में इसे राजपूत चित्रकला कहा, जिसमें पहाड़ी और मालवा शैली भी शामिल थी ।

मुख्य शाखाएँ:

शाखा/शैलीप्रमुख क्षेत्रविशेषता
मेवाड़ शैलीउदयपुर, चित्तौड़गढ़धार्मिक, वीरता, कृष्ण-लीला, गहरे रंग
मारवाड़ शैलीजोधपुर, नागौरशाही जीवन, युद्ध, लोककथाएँ
बूंदी शैलीबूंदी, कोटाप्रकृति, वर्षा, बाग-बगीचे, रागमाला
बीकानेर शैलीबीकानेरमुगल प्रभाव, सूक्ष्मता, बारीक चित्रण
किशनगढ़ शैलीकिशनगढ़राधा-कृष्ण, भावुकता, सौंदर्य
जयपुर शैलीजयपुरदरबारी दृश्य, त्योहार, होली, पशु-पक्षी
अलवर शैलीअलवरसोने-चाँदी रंग, गणिकाएँ, यूरोपीय प्रभाव

राजस्थान की प्रमुख चित्रशैलियाँ

1. मेवाड़ शैली

मुख्य केंद्र: उदयपुर, नाथद्वारा, चावंड, देवगढ़

इतिहास एवं विकास:

  • मेवाड़ शैली को राजस्थानी चित्रकला की जन्मभूमि माना जाता है। इसकी उत्पत्ति 17वीं शताब्दी में मानी जाती है, जब निसारदीन द्वारा चुनार में रागमाला चित्र बनाए गए ।
  • इस शैली ने अजंता की चित्र परंपरा को आगे बढ़ाया और भारतीय शास्त्रीय नियमों के आधार पर चित्र संयोजन किया गया ।

मुख्य विषय-वस्तु:

  • धार्मिक कथाएँ (रामायण, महाभारत, भागवत), कृष्ण लीला, बारहमासा, राग-रागिनियाँ, नायक-नायिका भेद ।
  • प्रकृति का सुंदर चित्रण: पहाड़, सरोवर, वृक्ष, पुष्प, आकाश, नदी आदि ।
  • प्रमुख वृक्ष: आम, खजूर, पलाश, केले के पत्ते; पशु-पक्षी: मोर, हाथी, चकोर, बत्तख आदि ।

विशेषताएँ:

  • रंगों का प्रयोग: चमकदार लाल, केसरिया, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला; स्वर्ण रंग आभूषण और वस्त्रों में ।
  • आकृतियाँ: पुरुषों के गोल चेहरे, भारी चिबुक, बड़ी मूँछें; स्त्रियों के मछलीनुमा नेत्र, लंबी नासिका, छोटे कद ।
  • वस्त्र: पुरुषों में घेरदार जामा, अकबरी पटका, शाहजहानी पगड़ी; स्त्रियों में बूटेदार/सादा लहंगा, पारदर्शी ओढ़नी ।
  • पृष्ठभूमि: रंगीन पट्टियाँ, अलंकृत वृक्ष, रात्रि दृश्य में गहरा रंग, चाँद-तारे ।
  • भित्ति चित्रों की परंपरा, पोथी ग्रंथों का चित्रण, सजीवता के लिए भवनों का चित्रण ।
  • मुगल प्रभाव भी देखने को मिलता है, विशेषकर वास्तु और प्रकृति चित्रण में ।

2. मारवाड़ शैली

मुख्य केंद्र: जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, अजमेर, नागौर, जैसलमेर

इतिहास एवं विकास:

  • मारवाड़ शैली पर मुगल चित्रकला का गहरा प्रभाव है, विशेषकर जोधपुर और बीकानेर में ।
  • किशनगढ़ शैली को राधा-कृष्ण के प्रेम चित्रों के लिए प्रसिद्धि मिली ।

मुख्य विषय-वस्तु:

  • धार्मिक कथाएँ, राग-रागिनी, बारहमासा, नायक-नायिका भेद, शिकार दृश्य, दरबारी जीवन, राधा-कृष्ण ।
  • प्रमुख पशु-पक्षी: ऊँट, चील, कौआ, आम, बादाम ।

विशेषताएँ:

  • रंगों का प्रयोग: पीला, गुलाबी, सफेद; किशनगढ़ में हल्के रंगों का प्रयोग अधिक ।
  • आकृतियाँ: पुरुषों में राजसी वेशभूषा, राठौड़ी पगड़ी; किशनगढ़ शैली में अंडाकार चेहरा, लंबी गर्दन, कमलनयन ।
  • किशनगढ़ शैली में राधा-कृष्ण के प्रेम को अत्यंत भावनात्मक और सुंदरता से दर्शाया गया है ।
  • बीकानेर शैली में मुगल प्रभाव के साथ-साथ स्थानीय रंगों और विषयों का समावेश ।

3. हाड़ौती शैली

मुख्य केंद्र: कोटा, बूंदी, झालावाड़

इतिहास एवं विकास:

  • बूंदी और कोटा हाड़ौती क्षेत्र की प्रमुख चित्रशैलियाँ हैं, जिनमें मेवाड़ और मुगल शैली का मिश्रण है ।
  • राव भवसिंह और राव उम्मेद सिंह के काल को स्वर्ण युग माना जाता है ।

मुख्य विषय-वस्तु:

  • शिकारी दृश्य, राग-रागिनी, बारहमासा, नायिका भेद, दरबारी जीवन, प्रकृति चित्रण ।
  • बूंदी शैली में रागिनी भैरव, मालश्री, दीपक आदि के चित्र प्रसिद्ध हैं ।

विशेषताएँ:

  • रंगों का प्रयोग: बूंदी में हरा, सुनहरा, भड़कीला रंग; कोटा में हल्का हरा, पीला, नीला ।
  • प्रकृति चित्रण: सरोवर, रंगीन बादल, वृक्ष, पुष्प, पक्षी (मोर, बत्तख), जानवर (हाथी, शेर, हिरण) ।
  • कोटा शैली में महिलाओं को भी शिकार करते हुए दिखाया गया है, जो अन्यत्र दुर्लभ है ।
  • भित्ति चित्रों का स्वर्ग: बूंदी के तारागढ़ किले और चित्रशाला में भित्ति चित्रों की अद्भुत श्रृंखला ।
  • प्रमुख चित्रकार: डालू (रागमाला चित्रण), रघुनाथ, लच्छीराम, नूरमोहम्मद, गोविन्द ।

4. ढूंढाड़ शैली

मुख्य केंद्र: जयपुर, आमेर, अलवर, शेखावाटी, उणियारा

इतिहास एवं विकास:

  • ढूंढाड़ शैली में मुगल और यूरोपीय प्रभाव स्पष्ट है, विशेषकर जयपुर और अलवर में ।
  • शेखावाटी क्षेत्र अपनी हवेलियों की भित्ति चित्रकला के लिए प्रसिद्ध है ।

मुख्य विषय-वस्तु:

  • धार्मिक कथाएँ, राग-रागिनी, गणिकाएँ, दरबारी जीवन, सामाजिक विषय, ऐतिहासिक घटनाएँ ।
  • शेखावाटी में दीवारों पर सामाजिक, धार्मिक, ऐतिहासिक प्रसंगों का चित्रण ।

विशेषताएँ:

  • रंगों का प्रयोग: जयपुर में गहरे लाल रंग की हासियाँ, अलवर में सोने-चांदी के रंग ।
  • आकृतियाँ: मध्यम आकार की महिलाएँ, पारदर्शी चुन्नी, पारंपरिक आभूषण ।
  • भित्ति चित्रकला: शेखावाटी की हवेलियों में रंगीन भित्ति चित्र, जिनमें देवता, लोककथाएँ, आधुनिक विषय भी ।
  • वास्तु चित्रण: भवन, मंडप, बाग-बगीचे, महल, दरबार ।

राजस्थान की चित्रकला: सारांश तालिका

शैलीप्रमुख केंद्रविषय-वस्तु/विशेषताएँ
मेवाड़उदयपुर, नाथद्वाराधार्मिक कथाएँ, प्रकृति, चमकदार रंग, भित्ति चित्र, मोर, हाथी, कदम्ब वृक्ष
मारवाड़जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़मुगल प्रभाव, राधा-कृष्ण, पीला/गुलाबी रंग, ऊँट, दरबारी जीवन, किशनगढ़ में प्रेम चित्र
हाड़ौतीबूंदी, कोटा, झालावाड़शिकारी दृश्य, सुनहरा/हरा रंग, भित्ति चित्र, पशु-पक्षी, महिलाओं का शिकार
ढूंढाड़जयपुर, अलवर, शेखावाटीमुगल/यूरोपीय प्रभाव, भित्ति चित्र, लाल हासियाँ, पारदर्शी वस्त्र, हवेलियों की चित्रकला

राजस्थान चित्रकला की विशेषताएँ

विशेषताविवरण
भावनात्मकताभक्ति, श्रृंगार, वीरता, प्रेम
विषयवस्तुधार्मिक, ऐतिहासिक, लोककथाएँ, प्रकृति
रंगों का प्रयोगगहरे, चमकीले, प्राकृतिक रंग
शैलीगत विविधताप्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट शैली
सूक्ष्मता व बारीकीचित्रण में अत्यंत बारीकी
परंपरा और नवाचारपरंपरा के साथ-साथ नवीनता का समावेश

प्रमुख चित्रकार एवं रचनाएँ

चित्रकारक्षेत्र/शैलीप्रसिद्ध रचना/योगदान
कमलचंद्रमेवाड़श्रावक प्रतिक्रमण चुर्णी (1260 ई.)
साहिब रामजयपुरदरबारी चित्र
निहालचंदकिशनगढ़बनी-ठनी, राधा-कृष्ण चित्र
बलदेवअलवरमुगल शैली चित्रण
गुलाम अलीअलवरगुलिस्तां चित्रण
डालुरामअलवरहिन्दू विषय चित्रण

राजस्थान चित्रकला के प्रमुख विषय

  • धार्मिक कथाएँ: रामायण, महाभारत, भागवत, राधा-कृष्ण लीला।
  • प्राकृतिक दृश्य: वर्षा, बाग-बगीचे, पशु-पक्षी।
  • लोककथाएँ: प्रेम, वीरता, शौर्य।
  • दरबारी जीवन: शिकार, उत्सव, होली, दरबार।
  • सामाजिक जीवन: ग्रामीण जीवन, स्त्रियों के कार्य, त्योहार।

राजस्थान चित्रकला में रंग एवं सामग्री

सामग्री/रंगस्रोत/प्रयोग
लालगेरू, सिंदूर
पीलाहल्दी, पीली मिट्टी
हरापत्तियाँ, हरा पत्थर
नीलानील, लैपिस लाजुली
कालाकालिख, कोयला
सोना-चाँदीविशेष चित्रों में
कागज, कपड़ा, दीवारचित्रण के माध्यम

राजस्थान चित्रकला का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व

  • सांस्कृतिक पहचान: राजस्थान की चित्रशैलियाँ राज्य की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं।
  • धार्मिक महत्व: मंदिरों, जैन ग्रंथों, महलों में चित्रण से धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति।
  • लोकजीवन का चित्रण: ग्रामीण जीवन, त्योहार, उत्सव, प्रेम, वीरता का सुंदर चित्रण।
  • अर्थव्यवस्था में योगदान: चित्रकला से जुड़े कारीगरों, चित्रकारों को आजीविका।
  • पर्यटन में वृद्धि: महलों, किलों, संग्रहालयों में चित्रकला के कारण पर्यटन को प्रोत्साहन।

राजस्थान चित्रकला की चुनौतियाँ और संरक्षण

  • आधुनिकता का प्रभाव: पारंपरिक चित्रशैलियों पर आधुनिकता का असर।
  • संरक्षण की आवश्यकता: पुरानी पेंटिंग्स, भित्तिचित्रों को संरक्षण की आवश्यकता।
  • नई पीढ़ी में रुचि: युवाओं में पारंपरिक चित्रकला के प्रति जागरूकता बढ़ाना जरूरी।
  • सरकारी प्रयास: संग्रहालय, आर्ट गैलरी, प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना।

महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Facts) – परीक्षा दृष्टि से

बिंदुविवरण
राजस्थान चित्रकला का स्वर्णकाल17वीं-18वीं शताब्दी
चित्रकला का जन्मस्थानमेवाड़ (मेदपाट)
प्रसिद्ध चित्रशैलीकिशनगढ़ (बनी-ठनी), मेवाड़, बूंदी
प्रमुख चित्रकारकमलचंद्र, साहिब राम, निहालचंद
प्रमुख विषयराधा-कृष्ण, रागमाला, दरबारी जीवन
रंगों का स्रोतप्राकृतिक रंग, सोना-चाँदी

राजस्थान की चित्रकला ने न केवल भारतीय कला को समृद्ध किया, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक जीवन को भी गहराई से प्रभावित किया। मेवाड़, मारवाड़, बूंदी, किशनगढ़, बीकानेर, जयपुर, अलवर आदि क्षेत्रों की चित्रशैलियाँ आज भी अपनी विशिष्टता, रंगबिरंगी छटा और भावनात्मक गहराई के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। संरक्षण और नवाचार के साथ यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।

Leave a Comment

WhatsApp
error: Please do not play.