1857 की क्रांति भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसमें राजस्थान का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। यह क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम संगठित प्रयास माना जाता है। राजस्थान में कई छावनियों और रियासतों में क्रांति की लपटें फैलीं और विभिन्न राजाओं, सैनिकों तथा आम जनता ने इसमें भाग लिया। इस क्रांति ने राजस्थान के सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य को व्यापक रूप से प्रभावित किया।
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राजस्थान में 1857 की क्रांति का प्रारंभ
राजस्थान में 1857 की क्रांति का प्रारंभ 28 मई, 1857 को हुआ। इस दिन नसीराबाद छावनी (अजमेर) की 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। इन सैनिकों ने छावनी पर हमला किया, उसे लूट लिया और ब्रिटिश अधिकारियों के बंगलों पर हमला कर दिया।
नसीराबाद में क्रांति की घटनाएँ
- सैनिकों ने मेजर स्पोटिस वुड और न्यूबरी की हत्या कर दी।
- हत्याओं के बाद अंग्रेज अधिकारी भयभीत होकर नसीराबाद छोड़कर भाग गए।
- विद्रोही सैनिकों ने छावनी को लूटने के बाद दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
- ये सैनिक 18 जून, 1857 को दिल्ली पहुंचे और दिल्ली को घेरने वाली ब्रिटिश पलटन को हरा दिया।
इसके पश्चात क्रांति की आग राजस्थान के अन्य हिस्सों में भी फैल गई।
राजस्थान के प्रमुख विद्रोह केंद्र
विद्रोह केंद्र | तिथि | प्रमुख घटनाएँ | नेतृत्वकर्ता |
---|---|---|---|
नसीराबाद | 28 मई, 1857 | 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री का विद्रोह, अंग्रेज अफसरों की हत्या | अज्ञात |
नीमच | 3 जून, 1857 | शस्त्रागार में आग, ब्रिटिश अधिकारियों के बंगलों पर हमला | अज्ञात |
कोटा | 15 अक्टूबर, 1857 | मेजर बर्टन और उसके परिवार की हत्या | रिसालदार मेहराबखाँ, लाला जयदयाल |
धौलपुर | अक्टूबर, 1857 | ग्वालियर और इंदौर के क्रांतिकारियों का प्रवेश | अज्ञात |
अलवर | 1857 | अंग्रेज विरोधी गतिविधियाँ | विलायत खाँ, सादुल खाँ, उस्मान खाँ |
नीमच छावनी में क्रांति
3 जून 1857 को नीमच छावनी के भारतीय सैनिकों ने नसीराबाद की क्रांति की सूचना मिलते ही विद्रोह कर दिया। उन्होंने:
- शस्त्रागार में आग लगा दी
- ब्रिटिश अधिकारियों के बंगलों पर हमला किया
- छावनी पर अधिकार कर लिया
कोटा में क्रांति
कोटा में क्रांति की घटनाएँ अत्यंत महत्वपूर्ण रहीं:
- 14 अक्टूबर, 1857 को कोटा के पोलिटिकल एजेन्ट मेजर बर्टन ने कोटा महाराव रामसिंह द्वितीय से अंग्रेज विरोधी अधिकारियों को दण्डित करने का सुझाव दिया।
- महाराव ने अधिकारियों पर अपना नियंत्रण न होने का तर्क देकर इनकार कर दिया।
- 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा की सेना ने रेजीडेन्सी को घेरकर मेजर बर्टन और उसके पुत्रों तथा एक डॉक्टर की हत्या कर दी।
- बर्टन का सिर कोटा शहर में घुमाया गया और महाराव का महल घेर लिया गया।
- विद्रोही सेना का नेतृत्व रिसालदार मेहराबखाँ और लाला जयदयाल ने किया।
धौलपुर में क्रांति
- अक्टूबर, 1857 में ग्वालियर और इंदौर के क्रांतिकारी सैनिकों ने धौलपुर में प्रवेश किया।
- धौलपुर राज्य की सेना और अधिकारी क्रांतिकारियों से मिल गए।
- विद्रोहियों ने दो महीने तक राज्य पर अपना अधिकार बनाए रखा।
- दिसम्बर, 1857 में पटियाला की सेना ने धौलपुर से क्रांतिकारियों को भगा दिया।
राजस्थान के शासकों की भूमिका
राजस्थान के शासकों ने 1857 की क्रांति के दौरान विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं। कुछ ने अंग्रेजों का साथ दिया, तो कुछ ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया।
रियासत | शासक | स्थिति | ब्रिटिश प्रतिक्रिया |
---|---|---|---|
जयपुर | – | अंग्रेजों का समर्थन (जनता और राजा दोनों) | – |
अलवर | रामसिंह | अंग्रेजों का समर्थन | सितार-ए-हिन्द की उपाधि, कोटपूतली की जागीर |
कोटा | रामसिंह द्वितीय | तटस्थ | – |
भरतपुर | – | पोलिटिकल एजेन्ट का शासन, सेना ने अंग्रेजों का साथ दिया | – |
धौलपुर | भगवन्त सिंह | अंग्रेजों का समर्थन | – |
अंग्रेजों का समर्थन करने वाले शासक
- जयपुर राजस्थान की एकमात्र ऐसी रियासत थी, जिसके शासक और जनता दोनों ने अंग्रेजों का साथ दिया।
- अलवर के शासक रामसिंह ने अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की, जिसके लिए उन्हें सितार-ए-हिन्द की उपाधि व कोटपूतली की जागीर दी गई।
- धौलपुर के शासक भगवन्त सिंह अंग्रेजों के पक्षधर थे।
क्रांतिकारियों का समर्थन करने वाले
- अलवर के दीवान विलायत खाँ, सादुल खाँ व उस्मान खाँ ने अंग्रेज विरोधी कार्य किए।
- भरतपुर की मेव व गुर्जर जनता ने क्रांतिकारियों का साथ दिया।
- कोटा की सेना ने मेजर बर्टन की हत्या कर विद्रोह में सक्रिय भागीदारी की।
प्रमुख क्रांतिकारी व्यक्ति
नाम | रियासत/क्षेत्र | योगदान |
---|---|---|
रिसालदार मेहराबखाँ | कोटा | कोटा में विद्रोही सेना का नेतृत्व |
लाला जयदयाल | कोटा | कोटा में विद्रोही सेना का नेतृत्व |
विलायत खाँ | अलवर | अंग्रेज विरोधी गतिविधियों का संचालन |
सादुल खाँ | अलवर | अंग्रेज विरोधी गतिविधियों का संचालन |
उस्मान खाँ | अलवर | अंग्रेज विरोधी गतिविधियों का संचालन |
पोलिटिकल एजेंट और उनकी भूमिका
ब्रिटिश सरकार ने राजस्थान की रियासतों में अपने प्रतिनिधि के रूप में पोलिटिकल एजेंट नियुक्त किए थे। इन एजेंटों का कार्य रियासतों पर नज़र रखना और ब्रिटिश हितों की रक्षा करना था।
रियासत | पोलिटिकल एजेंट | घटना |
---|---|---|
कोटा | मेजर बर्टन | 15 अक्टूबर, 1857 को हत्या |
भरतपुर | – | 1857 में भरतपुर पर पोलिटिकल एजेंट का शासन था |
धौलपुर | – | कोई विशेष उल्लेख नहीं |
अलवर | – | कोई विशेष उल्लेख नहीं |
मेजर बर्टन की हत्या
- 14 अक्टूबर, 1857 को कोटा के पोलिटिकल एजेन्ट मेजर बर्टन ने कोटा महाराव रामसिंह द्वितीय से अंग्रेज विरोधी अधिकारियों को दण्डित करने का सुझाव दिया।
- महाराव ने इनकार कर दिया।
- 15 अक्टूबर, 1857 को कोटा की सेना ने रेजीडेन्सी को घेरकर मेजर बर्टन, उसके पुत्रों और डॉक्टर की हत्या कर दी।
क्रांति के परिणाम और महत्व
1857 की क्रांति के दौरान राजस्थान के विभिन्न राज्यों द्वारा अंग्रेजों को दिए गए सहयोग के बारे में लार्ड कैनिंग (तत्कालीन गवर्नर जनरल) ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“इन्होंने तूफान में तरंग अवरोध का कार्य किया, नहीं तो हमारी किश्ती बह जाती”
यह कथन राजस्थान के कुछ शासकों द्वारा अंग्रेजों को दिए गए समर्थन के महत्व को दर्शाता है।
राजस्थान के 1857 की क्रांति का कालक्रम
तिथि | स्थान | घटना |
---|---|---|
28 मई, 1857 | नसीराबाद | 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री का विद्रोह, मेजर स्पोटिस वुड और न्यूबरी की हत्या |
3 जून, 1857 | नीमच | नीमच छावनी के सैनिकों का विद्रोह, शस्त्रागार में आग |
18 जून, 1857 | दिल्ली | नसीराबाद के विद्रोही सैनिकों का दिल्ली पहुँचना |
14-15 अक्टूबर, 1857 | कोटा | मेजर बर्टन की हत्या, महाराव के महल का घेराव |
अक्टूबर, 1857 | धौलपुर | ग्वालियर और इंदौर के क्रांतिकारियों का प्रवेश |
दिसम्बर, 1857 | धौलपुर | पटियाला की सेना द्वारा क्रांतिकारियों का उन्मूलन |
क्रांति के प्रभाव और परिणाम
1857 की क्रांति के बाद राजस्थान में अनेक परिवर्तन हुए:
- ब्रिटिश राज्य की नीतियों में बदलाव
- क्रांति का समर्थन करने वाले शासकों के प्रति कठोर नीति
- अंग्रेजों का समर्थन करने वाले शासकों को पुरस्कार व सम्मान
- राजस्थान में पोलिटिकल एजेंट की शक्तियों में वृद्धि
- रियासतों पर ब्रिटिश नियंत्रण बढ़ना
- स्थानीय लोगों और जनजातियों के आंदोलनों का मार्ग प्रशस्त होना
निष्कर्ष
1857 की क्रांति में राजस्थान की भूमिका महत्वपूर्ण रही। राजस्थान के विभिन्न छावनियों और रियासतों में क्रांति की आग लगी, जिसमें सैनिकों, आम जनता और कुछ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। हालांकि अधिकांश राजस्थानी शासकों ने अंग्रेजों का साथ दिया, परंतु जनता के एक वर्ग, जनजातियों और कुछ सैनिक टुकड़ियों ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया।
इस क्रांति ने राजस्थान में राष्ट्रीय जागरण की भावना को बढ़ावा दिया और भविष्य के आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी। यह राजस्थान के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो राज्य की वीरता, साहस और स्वतंत्रता के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- नसीराबाद छावनी – राजस्थान में क्रांति का प्रारंभ (28 मई, 1857)
- कोटा – मेजर बर्टन की हत्या (15 अक्टूबर, 1857)
- नीमच छावनी – विद्रोह की दूसरी घटना (3 जून, 1857)
- जयपुर – एकमात्र रियासत जहां जनता और राजा दोनों ने अंग्रेजों का समर्थन किया
- लार्ड कैनिंग का कथन – “इन्होंने तूफान में तरंग अवरोध का कार्य किया”
यह लेख राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय की स्थिति पर आधारित है और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।