राजस्थान में किसान एवं जनजाति आंदोलन

By RR Classes

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राजस्थान का इतिहास विभिन्न सामाजिक-आर्थिक आंदोलनों से भरा हुआ है। इस धरती पर किसानों और जनजातियों ने अपने अधिकारों के लिए समय-समय पर संघर्ष किया है। ये आंदोलन न केवल स्वतंत्रता संग्राम के अभिन्न अंग थे, बल्कि सामाजिक-आर्थिक विषमताओं के विरुद्ध भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजस्थान में किसान एवं जनजाति आंदोलन ने ब्रिटिश शासन और देशी रियासतों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ संघर्ष का इतिहास रचा है।

राजस्थान में किसान आंदोलन

1. बिजोलिया किसान आंदोलन (1897-1941)

बिजोलिया किसान आंदोलन राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध और लंबा चलने वाला आंदोलन था। यह भारत का पहला अहिंसात्मक किसान आंदोलन माना जाता है और राजस्थान का प्रथम संगठित किसान आंदोलन था।

स्थान एवं पृष्ठभूमि

  • बिजोलिया वर्तमान में भीलवाड़ा जिले में स्थित है, जिसे ऊपरमाल की जागीर गांव कहा जाता था।
  • इस जागीर का संस्थापक अशोक परमार था, जो 1527 के खानवा युद्ध में राणा सांगा की ओर से लड़ने गया था।
  • अंग्रेजी नियंत्रण से पूर्व बिजोलिया की विशेष स्थिति थी और यह क्षेत्र मराठा आक्रमण का सर्वाधिक शिकार था।

आंदोलन का विकास

  • इस आंदोलन की शुरुआत 1897 में गिरधरपुरा गांव में हुई थी।
  • किसानों के दो प्रतिनिधि नानजी पटेल और ठाकरी पटेल मेवाड़ महाराणा फतेह सिंह से मिलने उदयपुर गए थे।
  • इस आंदोलन के प्रणेता साधु सीताराम दास थे, जिन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था।
  • यह आंदोलन धाकड़ किसानों द्वारा किया गया था।
  • 1927 से बिजोलिया किसान आंदोलन के मुख्य नेता माणिक्य लाल वर्मा थे।

महत्वपूर्ण घटनाएँ

  • अक्षय तृतीया के दिन 1932 को प्रातः 6:00 बजे 4000 किसानों ने अपनी इस्तीफाशुदा जमीनों पर हल चलाना प्रारंभ किया।
  • डाबी एवं गराडा में 28 जुलाई-3 अगस्त 1922 की सभाओं में किसानों ने यह निर्णय किया था कि वे राज्य के आदेश की अवहेलना करेंगे।
  • 2 अप्रैल 1923 को डाबी में किसान सभा का आयोजन किया गया था।
  • इस सभा में राजस्थान सेवा संघ के प्रतिनिधि हरिभाई कीकर तथा भवन लाल स्वर्णकार प्रज्ञाचक्षु ने भी भाग लिया था।
  • सभा में सर्वप्रथम नानक देव ने विजयसिंह पथिक द्वारा रचित झंडा गीत गाया था।
  • इस सभा की अध्यक्षता नयनूराम ने की थी।

मीडिया का समर्थन

  • राजस्थान सेवा संघ द्वारा प्रकाशित राजस्थान केसरी तथा नवीन राजस्थान जैसे समाचार पत्रों में बिजोलिया किसान आंदोलन के समर्थन में क्रांतिकारी लेख छपे थे।

आंदोलन की समाप्ति

  • 1941 में बिजोलिया किसान आंदोलन जय हिंद एवं वंदे मातरम के उद्घोष के साथ समाप्त हुआ।

राजस्थान में जनजाति आंदोलन

राजस्थान में भील, मीणा, मेर, गरासिया आदि जनजातियां प्राचीन काल से ही निवास करती आई हैं। ये जनजातियां जंगलों से प्राप्त संसाधनों से अपनी आजीविका चलाती थीं और स्वतंत्र एवं स्वछन्द जीवन जीती थीं। अंग्रेजों के आने से इनकी स्वतंत्रता और स्वछन्दता पर रोक लग गई, जिससे इन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष आरम्भ किया।

1. मेर आंदोलन (1818-1821)

  • मेर जनजाति द्वारा अंग्रेजी नीतियों के विरुद्ध चलाया गया आंदोलन।
  • यह आंदोलन 1818 से 1821 तक चला।
  • मेर जनजाति मुख्य रूप से मेवाड़ क्षेत्र में निवास करती थी।

2. भील आंदोलन (1818-1860)

  • भील जनजाति राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा क्षेत्र में बहुसंख्यक है।
  • मेवाड़ राज्य की रक्षा में भीलों ने सदैव महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए मेवाड़ राज्य के राजचिन्ह में राजपूत के साथ एक धनुष धारण किए हुए भील का चित्र अंकित है।
  • भील आंदोलन कई चरणों में चला, जिसमें 1818-1860 का काल महत्वपूर्ण था।

3. मोतीलाल तेजावत का एकी आंदोलन

  • इसे मातृकुंडिया या भोमट भील आंदोलन भी कहा जाता है।
  • मोतीलाल तेजावत ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
  • यह आंदोलन भील जनजाति के अधिकारों के लिए चलाया गया।

4. जनजाति आंदोलनों के प्रमुख कारण

  • अंग्रेजों के आने से जनजातियों की स्वतंत्रता पर रोक लगना।
  • वन संसाधनों पर प्रतिबंध, जो उनकी आजीविका का प्रमुख स्रोत थे।
  • बेगार प्रथा (बिना मजदूरी के काम करना)।
  • शाही शिकार के लिए आदिवासियों को घेरना।
  • सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ और शोषण।

किसान और जनजाति आंदोलनों की तुलना

विशेषताकिसान आंदोलनजनजाति आंदोलन
मुख्य उद्देश्यजागीरदारी प्रथा, लगान, बेगार के विरुद्धवन अधिकार, बेगार, सामाजिक शोषण के विरुद्ध
प्रमुख नेतासीताराम दास, माणिक्य लाल वर्मामोतीलाल तेजावत, गोविंद गिरी
कालावधिप्रमुखतः 19वीं-20वीं शताब्दीप्रमुखतः 19वीं शताब्दी
स्वरूपअधिकतर अहिंसात्मकप्रारंभ में विद्रोही, बाद में अहिंसात्मक
प्रभावित क्षेत्रभीलवाड़ा, अजमेर, मेवाड़डूंगरपुर, बांसवाड़ा, उदयपुर, सिरोही

राजस्थान के प्रमुख किसान आंदोलनों का विवरण

आंदोलनवर्षस्थानप्रमुख नेताप्रमुख मांगें
बिजोलिया1897-1941भीलवाड़ासीताराम दास, माणिक्य लाल वर्मालगान कम करना, बेगार प्रथा समाप्त करना
डाबी-गराडा1922भीलवाड़ानयनूरामराज्य के आदेशों का विरोध
बेगू1921चित्तौड़गढ़रामनारायण चौधरीलगान समस्या
मेवाड़ किसान आंदोलन1938मेवाड़विजयसिंह पथिकराजनीतिक चेतना

राजस्थान के प्रमुख जनजाति आंदोलनों का विवरण

आंदोलनवर्षप्रभावित क्षेत्रप्रमुख नेताप्रमुख मांगें
मेर आंदोलन1818-1821मेवाड़वन अधिकार, बेगार का विरोध
भील आंदोलन1818-1860डूंगरपुर, बांसवाड़ावन अधिकार, स्वायत्तता
मातृकुंडिया आंदोलनमेवाड़, गोडवाड़मोतीलाल तेजावतआदिवासी अधिकार, शोषण के विरुद्ध
सम्प सभा1883 सेसिरोहीगोविंद गिरीआदिवासियों का सामाजिक उत्थान

राजस्थान में किसान एवं जनजाति आंदोलनों का समाज पर प्रभाव

सामाजिक प्रभाव

  • जनजातियों और किसानों में सामाजिक चेतना का विकास।
  • शिक्षा और जागरूकता का प्रसार।
  • जनजातीय एकता और किसान एकता का विकास।
  • सामाजिक सुधार आंदोलनों को बढ़ावा।

आर्थिक प्रभाव

  • जागीरदारी प्रथा और बेगार प्रथा का विरोध।
  • किसानों के आर्थिक शोषण का अंत।
  • लगान और करों में कमी।
  • वन अधिकारों की मान्यता।

राजनीतिक प्रभाव

  • स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती।
  • राजनीतिक चेतना का विकास।
  • प्रजामंडल आंदोलनों की शुरुआत।
  • स्वदेशी आंदोलन को समर्थन।

जनजाति आंदोलनों का उद्देश्य और योगदान

राजस्थान में जनजातीय आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों को सामाजिक रूप से उन्नत करना था। गोविंद गिरी ने सन् 1883 में राजस्थान के सिरोही जिले में सम्प सभा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भगत आंदोलन को नई दिशा देना था।

तीन महत्वपूर्ण मुद्दे जिन पर महाराणा ने कोई रियायत नहीं दी वे थे:

  1. आदिवासियों द्वारा वनों का उपयोग
  2. बेगार
  3. शाही शिकार के लिए आदिवासियों को घेरना

इन आंदोलनों का दमन अक्सर हिंसक तरीके से किया गया, लेकिन फिर भी इन्होंने राजस्थान के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।

राजस्थान में किसान एवं जनजाति आंदोलनों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि सामाजिक-आर्थिक न्याय की स्थापना में भी योगदान दिया। बिजोलिया किसान आंदोलन जैसे दीर्घकालिक आंदोलनों ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती प्रदान की। वहीं मेर आंदोलन और भील आंदोलन जैसे जनजातीय संघर्षों ने आदिवासी समुदायों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया।

इन आंदोलनों ने राजस्थान के इतिहास में अपना विशेष स्थान बनाया है और आज भी हमें प्रेरित करते हैं कि अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। राजस्थान के किसान एवं जनजाति आंदोलनों का अध्ययन न केवल इतिहास को समझने के लिए बल्कि वर्तमान में सामाजिक-आर्थिक विषमताओं से लड़ने के लिए भी प्रेरणादायक है।

महत्वपूर्ण बिंदु (Quick Revision):

  • बिजोलिया आंदोलन – भारत का पहला अहिंसात्मक किसान आंदोलन (1897-1941)
  • मेर आंदोलन – 1818-1821 के मध्य
  • भील आंदोलन – 1818-1860 के मध्य
  • मोतीलाल तेजावत – एकी आंदोलन के प्रणेता
  • गोविंद गिरी – सम्प सभा के संस्थापक (1883)
  • जनजातीय आंदोलन का उद्देश्य – सामाजिक उत्थान

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