राजस्थान प्रदेश का एकीकरण भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। स्वतंत्रता के बाद, राजपूताना की विभिन्न रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य का निर्माण किया गया। यह प्रक्रिया 1948 से 1956 तक सात चरणों में पूरी हुई। इस लेख में हम राजस्थान के एकीकरण के प्रत्येक चरण को विस्तार से समझेंगे, जो प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
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एकीकरण से पूर्व राजस्थान की स्थिति
स्वतंत्रता के समय, राजपूताना में लगभग 22 रियासतें, 3 ठिकाने (लावा, कुशलगढ़, नीमराणा) और 1 केंद्रशासित प्रदेश (अजमेर-मेरवाड़ा) थे। इन सभी को मिलाकर एक राज्य बनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था।
वर्ग | संख्या |
---|---|
रियासतें | 22 |
ठिकाने | 3 |
केंद्रशासित प्रदेश | 1 |
एकीकरण के चरण
राजस्थान का एकीकरण सात चरणों में संपन्न हुआ, जो इस प्रकार हैं:
प्रथम चरण: मत्स्य संघ (18 मार्च 1948)
- रियासतें: अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली
- राजधानी: अलवर
- राजप्रमुख: धौलपुर के महाराजा उदयभान सिंह
- प्रधानमंत्री: शोभाराम कुमावत
- उद्घाटनकर्ता: एन. वी. गाडगिल
- विशेष: यह एकीकरण का पहला चरण था, जिसमें पूर्वी राजस्थान की चार रियासतों को मिलाकर मत्स्य संघ बनाया गया।
द्वितीय चरण: राजस्थान संघ (25 मार्च 1948)
- रियासतें: बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, कोटा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक
- राजधानी: कोटा
- राजप्रमुख: कोटा के महाराव भीम सिंह
- प्रधानमंत्री: गोकुल लाल असावा
- उद्घाटनकर्ता: एन. वी. गाडगिल
- विशेष: राजस्थान संघ में 9 रियासतों को शामिल किया गया, जिससे एक बड़े राजस्थान की नींव रखी गई।
तृतीय चरण: संयुक्त राजस्थान (18 अप्रैल 1948)
- रियासतें: राजस्थान संघ + उदयपुर
- राजधानी: उदयपुर
- राजप्रमुख: उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह
- प्रधानमंत्री: माणिक्य लाल वर्मा
- उद्घाटनकर्ता: जवाहरलाल नेहरू
- विशेष: उदयपुर के मिलने से संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ, जो एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
चतुर्थ चरण: वृहत्तर राजस्थान (30 मार्च 1949)
- रियासतें: संयुक्त राजस्थान + जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर
- राजधानी: जयपुर
- महाराजप्रमुख: उदयपुर के महाराणा भूपाल सिंह
- राजप्रमुख: जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय
- प्रधानमंत्री: हीरालाल शास्त्री
- उद्घाटनकर्ता: सरदार वल्लभभाई पटेल
- विशेष: इस चरण में जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर जैसी बड़ी रियासतें शामिल हुईं, जिससे वृहत्तर राजस्थान का निर्माण हुआ। 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पंचम चरण: संयुक्त वृहत्तर राजस्थान (15 मई 1949)
- रियासतें: वृहत्तर राजस्थान + मत्स्य संघ
- विशेष: मत्स्य संघ को शंकरराव देव समिति की सिफारिश पर वृहत्तर राजस्थान में मिलाया गया।
षष्ठ चरण: राजस्थान (26 जनवरी 1950)
- रियासतें: संयुक्त वृहत्तर राजस्थान + सिरोही (आबू और देलवाड़ा को छोड़कर)
- विशेष: सिरोही रियासत को मिलाया गया, लेकिन आबू और देलवाड़ा को गुजरात में शामिल किया गया।
सप्तम चरण: वर्तमान राजस्थान (1 नवंबर 1956)
- रियासतें: राजस्थान + आबू, देलवाड़ा, अजमेर-मेरवाड़ा, मध्य प्रदेश का सुनेल टप्पा क्षेत्र
- विशेष: राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत अजमेर-मेरवाड़ा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया, आबू और देलवाड़ा को भी राजस्थान में शामिल किया गया। मध्य प्रदेश के सुनेल टप्पा क्षेत्र को राजस्थान में मिलाया गया, जबकि राजस्थान के सिरोंज क्षेत्र को मध्य प्रदेश में शामिल किया गया।
- वर्तमान राजस्थान का स्वरूप 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आया।
एकीकरण के समय प्रमुख समितियाँ
समिति का नाम | सिफारिश |
---|---|
शंकरराव देव समिति | मत्स्य संघ का विलय वृहत्तर राजस्थान में |
फजल अली आयोग | भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन |
एकीकरण के समय राजधानी का निर्धारण
राजस्थान की राजधानी का निर्धारण एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। इसके लिए एक समिति बनाई गई, जिसने जयपुर को राजधानी बनाने की सिफारिश की।
शहर | सिफारिश का आधार |
---|---|
जयपुर | सबसे बड़ी रियासत, प्रशासनिक सुविधाएँ |
एकीकरण के समय प्रमुख व्यक्तियों का योगदान
- सरदार वल्लभभाई पटेल: भारतीय रियासतों के एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका।
- वी. पी. मेनन: रियासती विभाग के सचिव, एकीकरण में सक्रिय भूमिका।
- हीरालाल शास्त्री: राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री, एकीकरण में योगदान।
- माणिक्य लाल वर्मा: उदयपुर के प्रधानमंत्री, संयुक्त राजस्थान में महत्वपूर्ण भूमिका।
एकीकरण का महत्व
- राजपूताना की विभिन्न रियासतों को मिलाकर एक राज्य का निर्माण हुआ।
- प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ हुई।
- आर्थिक विकास को गति मिली।
- सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा मिला।
विभिन्न चरणों में सम्मिलित रियासतों का सारांश
चरण | सम्मिलित रियासतें |
---|---|
प्रथम | अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली |
द्वितीय | बांसवाड़ा, बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड़, किशनगढ़, कोटा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, टोंक |
तृतीय | द्वितीय चरण + उदयपुर |
चतुर्थ | तृतीय चरण + जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर |
पंचम | चतुर्थ चरण + मत्स्य संघ |
षष्ठ | पंचम चरण + सिरोही (आबू-देलवाड़ा को छोड़कर) |
सप्तम | षष्ठ चरण + आबू-देलवाड़ा, अजमेर-मेरवाड़ा, सुनेल टप्पा |
राजस्थान प्रदेश का एकीकरण एक जटिल प्रक्रिया थी, जो सरदार वल्लभभाई पटेल और वी. पी. मेनन जैसे नेताओं के कुशल नेतृत्व में सफल हुई। सात चरणों में संपन्न इस एकीकरण ने राजस्थान को एक मजबूत और एकीकृत राज्य बनाया। यह प्रक्रिया न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए भी आवश्यक थी। राजस्थान का एकीकरण भारतीय इतिहास में एक अविस्मरणीय घटना है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- मत्स्य संघ – पहला चरण
- वृहत्तर राजस्थान – चौथा चरण
- 30 मार्च – राजस्थान दिवस
- 1 नवंबर 1956 – वर्तमान राजस्थान का स्वरूप
- सरदार वल्लभभाई पटेल – एकीकरण के सूत्रधार
यह लेख राजस्थान प्रदेश के एकीकरण पर आधारित है और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अत्यंत उपयोगी है।